Anmol vachan
पानी स्थिर और निर्मल होता है, परन्तु बाहर की हवा उसे चंचल बना देती है ! उसी तरह उद्वेग हमे असहनशील बन देता है ! चित पर बाहरी हवा अर्थात उद्वेगों का असर नही होगा तो वह विकार शून्य हो जायेगा ! हर परिस्थिति में सहनशील रहना ही भक्त्त की पहचान है ! Water is steady and clean but outer wind makes it restless! Same way restlessness makes us intolerant! Intellect will be faultless if outer environment or restlessness will not effect it! To be tolerant in every condition is the sign of devotee! |
भक्त्ति को कितना भी छुपाओ, परन्तु उसकी सुगन्ध तो फैलती है ! भक्त्ति की सुगन्ध वासनाओं की दुर्गन्ध को एक एक कर के ख़तम कर देती है ! Sweet fragrance of of devotion spreads, no matter how much you hide! This perfume of devotion destroys the bad smell of pleasures one by one! |
सब धन से श्रेष्ट धन प्रेम है !
सब साधन से भी श्रेष्ट साधन प्रेम है ! यदि महान से महान पतित है और उसके पास प्रेम धन है, तो वह भी प्रभु का सबसे अधिक प्रिया है ! ह्रदय में प्रेम पैदा करो, और उसे चारो ओर फैलादो ! तुम्हारा प्रेम एक समुन्द्र बन जाये, जिसमे सारा जगत डूब जाये ! Of all the means, love is the best wealth! If the most sinner has the love for Krishna, he is Krishna's best devotee! Generate the love for Krishna, and let it spread all over! May your love become ocean, in which whole world drown |
जिस के पास धन है तो वो धन देगा ! भोगी भोग देगा ! ज्ञानी ज्ञान देगा ! भक्त्त भक्त्ति देगा ! धाम निष्ठा बाला धाम निष्ठा देगा ! हर जीव संसार को कुछ ना कुछ देता है ! परन्तु देता वो ही है, जो उसके पास होता है ! One who has money, will give money! Enjoy will give Bhog! Learned person will give knowledge! The devotee will give devotion! Person with faith in Dham will give the same! Everybody gives something or other to this world! But the person can only give, what he has it! |
कलियुग में प्रभु नाम के अतिरिक्त संसार में भव सागर पार करने का ओर कोई साधन नही है ! In Kaliyg, there is no other way to cross Bhavsagar, except Krishna's name! |
prarthna
हे नाथ! मैंने हार मान लिया ! सब तरफ से मेरी हार हो गयी ! माया से भी मैं हारा, और सभी साधनों से भी हार मान लिया ! मैं किसी भी साधन के योग्य नहीं हूँ ! हारकर के, निराश होकर के मैं तुम्हें बुलाता हूँ ! मेरी हार को जीत में बदल दो ! ये संसार दुःखमय है ! स्वयं भगवान ने कहा कि हे अर्जुन, यहाँ की प्राप्ति अनित्य है ! ये शरीर भी थोड़े दिन में चला जायेगा, ये शरीर जाने वाला है, ये सब अनित्य है! इससे किसीको आज तक सुख नहीं मिला, ना शरीर से मिला, ना संसार से मिला ! कोई भी प्राणी जब मरने लग जाता है, तो क्या लेकर जाता है , दुःख ! जब आया था, जब पैदा हुआ था, तब भी रोया था ! जीवन की शुरुआत भी रोने से होती है और जीवन का अंत भी रोने से होता है ! इसलिए भगवान ने कहा ये दुखमय संसार है ! जीव यहाँ दुःख के साथ रोता हुआ पैदा होता है, कष्ट से पैदा होता है और कष्ट में मरता है ! हम लोग भूल गये जब गर्भ में थे, तब कष्ट था, लेकिन संसार में जन्म लेने के बाद क्षुद्र विषयों में हंसते है, वो भी उसे नहीं मिलते क्योंकि अनित्य है संसार ! इसलिये हे गोविन्द! फिर भी मेरी आसक्ति नहीं जाती है, शरीर से, शरीर के संबंधों से, संसार से ! इसलिये मैं हार गया ! हे गोविन्द! हे श्याम! मेरी टेर तू सुनले, मेरी टेर तू सुन ले ! माया के पानी में मै डूब रहा हूँ ! किनारे को देख रहा हूँ, जहाँ तक किनारा है ! आपके चरण, आपके चरणों की शरण मिल जाए तो, किनारा मिल गया ! आपके चरणों की शरण ना मिला तो, सदा डूबते ही रहेंगे ! माया के प्रभाव में, ना जाने कितनी दूर चले जायेंगे, अभी तो आपके पास हैं ! ये चरण, उनकी शरण का किनारा, ना मिला, तो ना जाने कहाँ चले जायेंगे ! कितनी दूर चले जायेंगे, पता नहीं ! ८४ लाख योनियाँ हैं , पता नहीं किस योनी में जन्म लेना पड़ेगा ! वहाँ भजन तो क्या कुछ भी ज्ञान नहीं रहता ! चारों ओर घोर अन्धकार होता है ! इसलिये मै डूब तो रहा हूँ पर आपकी ओर भी देख रहा हूँ ! हे दीनबंधु दीनानाथ, मेरी डोरी तेरे हाथ ! जिसको भगवान का आश्रय मिल गया, वो पार हो गया ! वरना स्वर्ग में भी दुःख है ! दुःख है, जहाँ भी भोग है , इसलिये मैं हार चुका हूँ ! इस भव- सागर में आपने हम को जहाज दिया ! ये शरीर, एक जहाज है ! ये शरीर, भगवान ने दिया इस जहाज में बैठके तुम हमारे पास आ जाना ! बिना कारण प्यार करते हैं भगवान ! हमारे जैसे नीच, पापी, भगवद विमुख प्राणियों से और शरीर दे दिया यानि ये शरीर एक साधन है, भगवान के ओर जाने का ! ये शरीर जहाज दिया भगवान ने ! पर आसक्तियों का बोझ उठा लेता है मनुष्य, फिर डूब जाता है ! धन, धान, स्त्री, पुत्र, आदि की आसक्ति में डूब जाता है ! समस्त आसक्तियाँ, ये बड़े- बड़े बंधन हैं ! ये भारी भारी वजन लाद लिया, जिससे जहाज डूब रहा है ! अब ये जहाज डूबने वाला है ! जब जहाज भँवर में फंस जाता है, तब घूमने लग जाता है, चक्कर काटने लग जाता है और उसमें पानी भर जाता है और वो डूब जाता है ! हमारे इस शरीर रूपी जहाज में भ्रम का पानी भ्रम का भँवर घुस गया है ! विषयों में सुख है, ये भ्रम है, ये भ्रम का पानी जब घुस जाता है, तो जहाज डूब जाता है ! ये भ्रम ही हमें भटका रहा है कि धन में सुख है, स्त्री में सुख है, आसक्ति में सुख है, विषयों में सुख है ! ये अनंत भँवर उठ रहे हैं ! ये अब डूबने वाला है ! बचाओ रे गोपाल! बचायो रे मोहे डूबत से बचायो ! हे गोविन्द! ये जीव का भ्रम है कि अव विषयों में सुख मिलेगा ! इस भ्रम में उमर चली जाती है और कुछ नहीं मिलता ! ना भजन हो पाता है, ना कोई साधन हो पाता है, इस भँवर में भटकते- भटकते फिरते रहता है ! इस भँवर से निकलने के मैंने सब उपाय कर लिये, पर मैं नहीं निकल पाया ! एक भी भ्रम नहीं निकला मेरा ! मनुष्य इन भ्रमों में ही मर जाता है ! आदि शंकराचार्य जी ने कहा कि देखो, इस बूढ़े को, सब अंग गल गये हैं , बाल सफेद हो गये हैं , दाँत मुँह में नहीं हैं , फिर भी ये आशा लगाये है, संसार से, विषयों से, आसक्तियों से और ऐसे ही ये मर जायेगा ! बूढ़ा हो गया है, चल नहीं पाता है, लाठी लेकर चलता है ! कहाँ गया वो बचपन, वो जवानी, फिर भी आशा, जीव को नहीं छोडती ! अनेक प्रकार के उपाए किये, निकल नहीं पाया मैं, इसीलिये मैं हार गया ! मेरी हार हुई , हे नाथ ! मनुष्य सब विधि कर लेता है, सब साधन कर लेता है, सब विचार कर लेता है, विरक्त भी हो जाता है, साधू भी हो जाता है, लेकिन इस भ्रम से नहीं निकल पाता ! इस भव सागर से पार होने का एक रास्ता है, जैसे पूर्णिमा का चाँद, जब निकलता है तो सागर उमड़ता है, उसको ज्वार कहते हैं ! समुन्द्र उमड़ता है,लहरें बढ़, जाती हैं तो दूर- दूर किनारे में लहरें चली जाती हैं ! हे नाथ! जब आप अपना चन्द्र मुख दिखायेंगे, तो ये माया की लहरें बड़े जोर से उठेंगी और उनमें मैं किनारे लग जाऊंगा, मैं बाहर निकल जाऊंगा, मैं पार हो जाऊँगा ! इसलिये हे नाथ! एक झांकी दिखा दो, अपना मुख दिखा दो ! राधा बरसाने बाली! तेरी करुणा का मैं भिखारी ! राधे राधे -- श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यनन्दा हरे कृष्ण हरे राम श्री राधे गोविंदा -- हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे |
प्रिय साधकों
आपका नाम जीव की वासनाओं का हरन कर लेता है !
वासनाओं वाला आपका भजन नहीं कर सकता है !
वासनायो को जीव नहीं जला सकता, उसको तो केवल आप का नाम जलाता है ! हे नाथ सब से बड़ी यही कृपा है ! आपने स्वयम कहा था कि अर्जुन वासनायो के अन्धेरे को जीव कैसे हटा सकता है ! मै ही उसकी भावनायो में घुसता हूँ और वहाँ जा के अन्धेरो को नष्ट करता हूँ जो उसके ह्रदय में अनादिकाल का अंधकार है ! आंख बन्द करो तो अन्धेरा दिखाई पड़ेगा ! भीतर अन्त प्रकाश है ! पर जब आँख बन्द करो तो अन्धेरा दिखाई पड़ेगा ! मै इस अन्धकार को दूर करता हूँ उसकी भावनायो में घुस कर के जिन भावनायो में मल मूत्र घुसा हुआ है, बहाँ मै जाता हूँ और ज्ञान का दीपक जला देता हूँ ! तब जीव मेरी ओर चलता है ! वेद में बड़े बड़े यज्ञ लिखे है, पर क्या उनसे वासनाये नहीं जाती है ? सूरदास जी बोले नहीं ! अपने कर्म से अपने साधन से नहीं जायेंगी ! आप ने कहा है गीता में वेदों ने भी कहा है कि त्रिगुण विषय है, उनसे ऊपर उठो ! सकाम यज्ञ कामनाये बड़ा देते है और आप से दूर कर देते है और आप से विमुख कर देते है ! सिमित कर्म मार्ग है ! फूलो की तरह लगता है कि बड़ा आन्नद है इसमें ! जो जीव कामनायो को पूरा करता है बड़ा अच्छा लगता है ! पर ये भगवान् से अलग कर देता है ! बड़ी कठिनता से यज्ञ होता है, इस यज्ञ को भी कर लो पर जीव फिर भी आप से विमुख ही रहेगा ! इतना बड़ा व् कठिन यज्ञ करके भी जीव आप से विमुख ही रहा ! उसका नाम जरुर हुआ बड़ा कि बहुत बड़ा यज्ञ करवाया पर ह्रदय में भक्त्ति नहीं आयी ! ये काम तो केवल आपका नाम करता है ! हे नाथ विषयो का बंधन काटिये और मुझे अपनी शरण में लीजिये ! हे नाथ विषयो की आशा व् संसारियो का भरोसा छुड़ा दीजिये ! ये जो जीव को जड़ बना देती है, हमारी इन जडीतायो को दूर करो ! ये जड़ताये मुझे परमार्थ के मार्ग पे नहीं चलने देंगी ! यहाँ कपट नहीं चलेगा ! यहाँ संसार में जगह जगह मन फंसा हुआ है ! अनेक जगह विशवास है कि ये मेरी माँ है ये मेरी स्त्री है ये मेरा घर है ये मेरा प्यारा है ! ये सब झूठे विशवास है ! ये सब ख़त्म कर दो ! हे राधा रानी अब कृपा करो, ये विषयो का अन्धेरा दूर करो ! ये कृपा भक्त्ति से मिलती है ! ये कृपा योग आदि से नहीं मिलती ! गाओ नाचो, कीर्तन करो ! ये सच्चा मार्ग है ! ये भक्त्ति का मार्ग है ! ये बड़ा सरल मार्ग है, पर लोगो को विशवास नहीं होता ! जीव कठिन मार्ग की ओर चलता है ! भक्त्ति का मार्ग भगवान् के बहुत पास है , बहुत सरल है ! खूब गाओ, खूब नाचो, कृष्ण गुणगान करो आनंद से ! कठिन मार्ग की ओर क्यों जाते हो ? सरल मार्ग से आनंद से क्यों नही गाते हो ? कभी कभी महात्मा लोग दया कर के अपना अनुभव भी बता देते है ! वैसे तो अपने को पापी अधम बताते है लेकिन कभी कभी बता देते है तांकि जीव को विशवास हो जाये ! इस भजन में सूरदास जी ने अपना अनुभव बताया है कि मैंने भक्त्ति का प्रभाव देख लिया, इसलिए समझ के कह रहा हूँ अनुभव करके इसकी कह रहा हूँ कि इसकी छाप अन्य साधनों में नहीं है ! इसकी टकर नहीं हो सकती ! कठिन साधनों की ओर क्यों जाते हो ? हे गोपाल हे गोविन्द हे राधे तेरी करुना का मै भिखारी ! -- |
इच्छा एक रोग है, परन्तु श्री प्रभु को पाने की इच्छा रोग नही बल्कि सब रोगों की दवा है ! क्योंकि भगवद मिलन की इच्छा जाग्रत होते ही समस्त इच्छाए स्वत नष्ट हो जाती है ! Desire is a disease! But desire to get GOD is not a disease, but it is a cure for all the diseases! Because after awakening the desire for GOD, all the desires go away themselves! |
क्रोध क्यो आता है ?
क्रोध इस लिए आता है या तो हमारी इच्छा पुरी नही हो रही, या उस में कोई बाधा उत्पन्न का रहा है ! Why anger comes? It comes either our desire is not getting fulfilled or somebody is hindering it ! |
गोपी प्रेम ! यहाँ प्रेम के अतिरिक्त कोई भी धर्म आदि शेष नही रहता ! कृष्ण प्रेम के अतिरिक्त ओर कुछ है ही नही ! अब सोच लीजिये कि कितना उच्चा है ये गोपी प्रेम ! गोपिया ही सर्वश्रेष्ट उपासिका है देहधारियों में ! उनका गोविन्द में प्रेम इतना भावरुढ़ हो गया कि उन्होंने उस प्रेम में सम्पूर्ण मर्यादाए तोड़ दी ! उनके प्रेम में लोक मर्यादा, आर्य पथ, व् वेद् पथ को गोपियों ने सब छोड़ दिया! श्री कृष्ण ने भी विरह से पीड़ित गोपियों के विरह को दूर किया ! प्रेम के पीछे यहाँ श्री कृष्ण ने भी सब मर्यादायो को तोड़ दिया ! Gopi love! Except love no other religion remains here! Except Krishn's love they have nothing else! Now think that how high is this Gopi love! In living beings Gopies are the best worshippers! This love towards Govind became so strong that in that love, they broke all the norms! In their love to Krishna, Gopies left public norm, Aryapath and Vedic Path! Shri Krishna also removed the feeling of separation of Gopies, who were suffering fromm separation! Shri Krishna also broke all boundries for the sake of love! |
सतत आराधना करने का फल धन दौलत नही है, अपितु चित की निर्मलता है ! The result of continuous praying is not money and wealth, but purity of heart ! |
गोपियो ने प्रेम भाव से, कंस ने भय से, पांडवो ने स्नेह से श्री कृष्ण को पाया ! गंगा में स्नान कैसे भी करो, वह कल्याणकारी ही है ! श्री कृष्ण के पास कैसे भी पहुँच जाओ, पर पहुँच जाओ ! Gopies through love, Kans throough fear, Pandavas through affection, got Krishna ! However you take bath in Ganga, it is ausicious! However reach to Krishna, but get there!! |
श्याम को भंवरा कहते है ! भंवरा कहाँ रहता है ? भंवरा कमल के ऊपर रहता है ! जिस ह्रदय में सुंदर भाव होते है, वो ह्रदय कमल बन जाता है ! Shyam is called big beetle! Where does it live? It lives over lotus! Heart filled with beautiful feelings is, lotus! |
विशुद्व प्रेमी तो यह सोचता है कि यदि हमारे मिलन से भी प्रभु को कष्ट मिले, तो वह मिलन कभी ना हो ! प्रेमी कभी भी जीतना ही नही चाहता ! प्रेमी व् भक्त्त तो सदा हारता है ! वो तो जैसा उसका प्रेमी कर रहा है, उस में ही प्रसन्न रहता है ! अपना सब कुछ हार जाने के बाद ही प्रेम की सिद्वी हो सकती है, परन्तु हम सब जीतना चाहते है ! Real devotee thinks that if krishna-meeting causes pain to Krishna then that meeting should never happen! The devotee never wants to win! Affectionate and devotee always loses! He is happy with whatever his Beloved is doing! After loosing everything,love can be mature, but all of us want to win! ! |
सूर्यं कभी नही पूछता कि अन्धकार कितना पुराना है ! अन्धकार आज का है या वर्षो पुराना है ? सूर्य की किरणे तो अंधकार के पास पहुँचते ही उसे मिटा देती है ! ऐसे ही प्रभु की कृपा कभी यह नही पूछती कि सामने बाला कितना बड़ा पापी है ! प्रभु की कृपा होते ही जीव के समस्त पाप व् कष्ट मिट जाते है ! Sun never asks how old is darkness? Is the darkness of todays' or from several years! Sun-rays destroy darkness, as soon as they get there! Same way Shri Krishna's grace never asks that person standing in front, how big sinner he is? With Krishna's grace, man's sorrows and sins destroy! |
प्रेम क्या है ? प्रेम वही है जहाँ बुद्वि का लय हो जाता है ! फ़िर उस जीव को ये पता ही नही रहता की धर्म क्या है ? अधर्म क्या है ? सत्कर्म क्या है ? प्रेम ईशवर रूप है ! प्रेम में भगवान की भगवता या मर्यादा भी लुप्त हो जाती है ! What is love? Love is that where intellect merges! Then that man does not know what is religion? What is Adharm? What is good deed? Love is Godly! In love God's Godliness and limits disappear! |
जितना मनुष्य अपनी मै को काटता है, उतना ही भीतर ज्ञान प्रकाश होगा ! तुम्हारे अंदर के प्रकाश से तुम्हारे साथ साथ दूसरो को भी लाभ होगा | दो पैसे का भी अगर दिया जला दो, तो उससे भी प्रकाश सब को लाभ देता है, ये तो फ़िर भी तुम्हारे आचरण का दिया होगा ! As the devotee roots out his ego, the light of knowledge will glow accordingly! Along with you others will be benefited ! If you light up the the lamp for even two pennies, still it will help others, then this will be the lamp of your behavior ! |
प्रभु तो सतत हमारे साथ है, सिर्फ़ हमे देखना सीखना है ! God is constantly with us, only we have to learn to see Him ! |
मै प्रभु को रिझाने का क्या उपाए करू ? जैसे जैसे ये इच्छा प्रबल होती है, वैसे वैसे ही सब अन्य इच्छाए इस में लीन हो जाती है ! सांसारिक सुख भी अपने आप फीके लगते है ! जैसे सूर्य अंधेरे को रौंद डालता है उसी तरह प्रभु रति सारे मल माने विषय व विकारों को भून डालती है ! What can I do to please God ? This is staring point to meet Krishna! As soon as this desire becomes strong, all others merge in it! Worldly pleasures become meaningless to him! As the Sun crushes darkness, same way love for God roasts all pleasures and impurities! |
भक्त्तो का सच्चा प्रेम तो ऐसा है जैसे तुफानो में दिया जल रहा हो ! चाहे लाख अंधिया चले, लाख तूफान आये, परन्तु भक्त्त के प्रेम की ज्योंति बुझना तो दूर जरा सी भी विचलित भी नही होती ! The true devotee is like a burning lamp in midst of storms! No matter how many storms, tornadoes may come, but the lamp of devotee's love for Krishna, never flickers! |
यदि प्रभु जीव को कुछ ना दे तो, उसमे भी प्रभु की कृपा ही है ! प्रभु का अनुगृह तथा निगृह दोनों ही प्रभु की कृपा है ! If Krishna does not grant anything to devotee, that is also His favor ! To give and not to give, both are His grace ! |
चलती हुई व् मिटती हुई दुनिया में किसी की सता नही रही ! जो अपनी सता जमाने की कोशिश कर रहा है, वो तो निरामुर्ख है ! हम सोचते है कि हमारे पास शक्त्ति है ! हमारे पास शक्त्ति कहाँ है जब हम अपने ही शरीरी की एक छोटी सी भी क्रिया को नही रोक सकते ! In walking and abolishing world, nobody ruled forever! One who is trying to claim the power,is only fool! We think that we have strength! Where we have strength, when we cannot claim even smallest action of our body! |
भगवान किसी को कर्म, ज्ञान, या साधन से नही मिलेंगे ! भगवान तो केवल लगन से मिलेंगे ! We will not get Krishna by any action, knowledge or means! We will get Him, by persistence only! |
हर स्थिति में समता ही ज्ञान है, और विषमता ही अज्ञान है ! To be same, at every state is knowledge, otherwise it is ignorance ! |
आज का कर्म कल का फल होगा ! आज का कर्म भविष्य का फल होगा ! हमारे हाथ में जो समय है, हम उसका कुछ भी कर सकते है ! परन्तु जब ये समय हमारे हाथ से निकल गया, तो हम कुछ भी नही कर सकते ! Today's action will be the result for tomorrow! Today's action will be the fruit of future! We can do anything for the time we have in our hands! Once it has gone from our hands, we cannot do anything! |
भक्त्ति में तर्क नही चलता ! Argument does not work in devotion . |
पाप = `प` माने परमात्मा और `अप` माने उससे अलग करना, जो परमात्मा से अलग करे वो पाप है ! Pap = (Sin) 'P' = Parmatma ( God ) AP = (to separate from) The thing that separates us from god is sin . |
ठाकुर जी किसी के रूप पर मोहित ना होकर, किसी के भी भाव पर मोहित हो जाते है ! God is attracted by feelings, not by face ! |
संसार में सब कुछ असत्य है ! संसार में सब कुछ माया है ! संसार में सब कुछ दुःख है ! हम अनित्य को नित्य माने बैठे है, यही अविद्या है ! Everything is untruth in this world ! Everything is Illusion in this world ! Everything is sorrow in this world ! This is ignorance, to accept untruth as truth ! |
ह्रदय की निकटता ही सबसे बड़ी निकटता है ! Closeness of heart is the biggest closeness ! |
चिन्ता करने से कुछ नही होता, चिन्ता की जगह पर प्रभु का चिन्तन करो ! Worrying does not help, Do reflection, instead of worrying. |
अहम जलते ही जीव बच्चे जैसा हो जाता है ! As ego burns, man becomes child like ! |
" संत और असंत की परिभाषा ये है कि संत तो चंदन वृक्ष है और असंत कुल्हाडी है ! दोनों ही अपना अपना स्वभाव नही छोड़ते ! कुल्हाडी चंदन के बृक्ष को काट देती है, परन्तु चंदन अपनी सुगंध कुल्हाडी को दे देता है ! " " Definition of saint is, that he is like sandlewood tree and crooked person is like an axe ! Both of them do not leave their nature ! An axe cuts the tree, but sandlewood gives its fragrance to an axe ! " |
प्रभु की असली पूजा प्रेम है ! God's real prayer is love ! |
सबको क्षमा कर देना असली दान है ! Forgiving everyone is the real definition of charity. |
जिसका मन स्थिर हो गया फिर उसे कोई जप - तप, करने की जरुरत नहीं है ! Whoever can silence his or her mind does not need to do any chanting or meditation. |
अपने ह्रदय को निष्काम व शुद्ध कर लो, प्रभु खुद मिल जायेंगे ! Make your heart dispassionate and pure and you will find God automatically |
कोई भी मनुष्य जन्म से महान नहीं होता है उसके द्वारा किये गए अच्छे कार्य उसे महान बनाते हैं |
sukh sapna dukh budbudaa dono hain mehmaan sabka aadar kijiye jo bhaije bhagwaan har paristhiti me jo sam rahe vahi sadhak hai RADHE RADHE |
Namaskar, Bhut achhi koshish ki hai aapne. Itni saari achhi baton ko ek sath ek jagah pr pesh krna bhut mushkil kaam hai par aapne bkhubi ise anzaam diya hai.
Jaspal (Baghbaan) |
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