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silent-tears 13th October 2019 02:51 AM

वक़्त जिस्मों को कमानों में बदल देता हे
 
रेज़ा रेज़ा सा भला मुझमे बिखरता क्या हैे,
अब तेरा ग़म भी नहीं हे तो ये किस्सा क्या है

क्यों सज़ा लेता हे पलकों पर ये अश्कों के चराग,
ए हवा कुछ तो बता फूल से रिश्ता क्या है

उसने माँगा हे दुआओं में खुदा से मुझको,
और में चुप हूँ भला उसने भी माँगा क्या है

फिर वही कुफा ,वही शाम, वही चेहरे हैं,
इतनी सदियों में भी तारीख का बदला क्या है

वक़्त जिस्मों को कमानों में बदल देता हे
कोई बतला दो उसे खुद को समझता क्या है

खुद समझ जाओगे हाथों की लकीरें फारूक
उसकी आँखों में पढ़ो गौर से लिक्खा क्या है


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