बुलाने पे भी न वो रूका, मेरी ख़ामोशी ही अच्छी थी
अगर मैं होश में न था तो वो बेहोशी ही अच्छी थी l
किसी के वास्ते जीना, उसी के वास्ते मरना
यूँ चुप रहना भी क्या रहना, थोड़ी सरगोशी ही अच्छी थी l
जुदा होना भी मुश्किल था, भुला देना भी मुश्किल है
तेरा यूँ देख कर मुड़ जाने से फरामोशी ही अच्छी थी l
कहां से आना कहां को जाना किसे मालूम होता है
तूफां से आने के पहले की “यश” वो ख़ामोशी ही अच्छी थी l
(जसपाल)
Baghbaan
(
सरगोशी- शिकायत ..फरामोशी – भूलना