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16th March 2013, 09:50 AM
इश्तेहार बनगया----मुहम्मदअली वफा
हमारे जिस्मका चौला इश्तेहार बनगया
गदागीरी कहांकी, कारोबार बन गया
यहां तोडे मिनारे, मिहराबों पुजा घरको,
कभी जो तोडथा संग ,मुअम्मार बन गया
रहा ना बुलबुलोंको झघडा ईंट पत्थरका
जहां तिनके मिले उनहें घरबार बन गया
अभी देखा नथा मय खाना, और बहक गया
कहीं दो घूंट पीली तो मयखार बन गया.
वफा उठ गई हमारी नजर जरा सामने उनकी
हमेशा देखताथा हमको सर्मशार बना गया
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