...मैं ...
बहुत समकालीन है
सिर्फ एक "मैं "मेरा समकालीन नहीं
"मैं "बिना मेरा जन्म
पुण्य की थाली में पड़ा
अपराध का एक शगुन है
मांस में बंदी हुआ
मांस का एक क्षण है
और मांस की हर जीभ पर
जब भी कोई लफ्ज आता
खुदकशी करता
जो खुदकशी से बचता
कागज़ पर उतरता
तो कत्ल होता है
और एक धुंआ हवा में तैरता है
और मेरा "मैं "
अठवान्सें बच्चे की तरह मरता है
क्या किसी दिन यह मेरा "मैं "
मेरा समकालीन बनेगा ?
-अमृता प्रीतम