किस्मतें लूट गई _वफा -
12th November 2007, 10:53 AM
किस्मतें लूट गई _वफा
ढस गई दिवार भी ये रात की.
किस्मतें लूट गई सब ख्वाबकी.
आंख मी रूठी रही कुछ नींदसे
उलट गई सब करवटें बेताब की.
ये दिये की लौ क्यों जल्ती नहीं,
उठ रही है चिलमन क्या आपकी?
जिंदगी भी रुक गई एक मोड पर
शर्मा रही है सब दुलहने शामकी.
लग रहें है फ्ल मुकद्दरके ’वफा’
झुक रही है डालियां नाशाद्की
9नवे.2007
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