दुश्मन भी बदलदुं.__ मुहम्मदअली’वफा’
चेहरा भी बदलदुं और चिलमन भी बदल दुं,
क्या कह रहे हो आज तुम, दुश्मन भी बदल दुं.
हम तो खिलेंगे वहां बंझर हो या सहरा,
मुमकीन नहीं है दोस्त में उपवन भी बदल दुं.
बहता रहा में तो कभी जंगल बयांबां में,
फितरत नहीं मेरी कि पहरन भी बदलदुं.
मासुमियत के बर्ग से जीसका निखार है
मुमकिन है कैसे कि बचपन भी बदलदुं.
मेरी वफा का साथ रहे गा अदम में भी,
में वो नहीं जो डरके मसक्न भी बदल दुं
8जुन2008