उम्रों के
बूढे हुए जिस्मो को लांघकर
अगर कभी हम मिले तो
उस वक़्त भी मेरी ठहरी हुई इन आँखों में
मुस्करा रही होगी तुम्हारी मुहब्बत
तुम्हे जीतने के लिए
मैने कभी कोई बाजी नही खेली थी
अपने आप ही रख दी थी
सारी की सारी नज़में तुम्हारे सामने
मुहब्बत तो हारने का नाम हे......
-अमृता प्रीतम