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Originally Posted by ruchika
तकदीर से अपनी हूँ नाराज़…..
या ज़िन्दगी से अपनी हूँ खफा...
ये समझ नहीं आता मुझे…
रंज है मुझे किस बात का…
सब है पर कुछ भी नहीं ….
रोज़ नयी ज़िद्द..नयी दास्तान ….
कमी है ये इस दिल की ….
आखिर क्यों नहीं ये मानता …
रेत के टीलों पर कभी …
सपनो के महल बनते नहीं….
आकर उसे है बिखेरता…
साहिल जिसे वह अपना जनता….
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Bohat hi khoobsurat nazm hai aapki ruchika ji
Bohat pasand aayi hamey
Kya ishaara karey ye hawaaiye
Gaur se sun zara tu sadaaiye
Khushk pattey bhi kehte bohat kuch
Shabnami phool jo keh na paaiye