फरेबका बाज़ार देखिये
उठ गइ है आंख से तलवार देखिये
बनती है किसके गलेका हार देखिये.
जब भी मीले हमें, भूले उज़र कहां
उंनका ये बे मिसाली प्यार देखिये.
रातें भी रोती रही साये तले वहां,
दर्दोंके ये चांदका ईसार देखिये.
असवद मलता रहा सूरज लयल को,
उसकी मकर फरेबका बाज़ार देखिये.
किसका शिकवा’वफा’ करते रहें यहां,
सब यहां पाये गये बीमार देखिये.,
_ मोहम्मदअली वफा