समंदर कहां गया_मुहम्मदअली वफा
एक जिंदगी जीनेका तसव्वुर कहां गया
अशआर में ढलनेका तखय्युल कहां गाय.
सब सोचनेकी आदतें मफ्लूज हो गई,
हिकमतके मोतीओं का तदब्बुर कहां गया.
तूटी हुई है दिलकी सब शीशे की बस्तियां,
रुह की तस्बीहका तसलसुल कहां गया.
सन्नाटा छा गाया है टहनी पे खून की
नब्जोमें चहकताथा वो बुलबुल कहां गया.
ढूंढने न पाई उसे रोशनी की आंख
हाथों पे खेलता था मुकद्दर कहां गया.
दौर के आई है सब नदद्दीयां उम्मीदकी
बाहों में छुपा लेताथा, समंदर कहां गया.
11 मे 2008