देख ले_मोहम्मदअली’वफा’
मयखानेमें पीने का अंदाझ देख ले.
साकीया तु घर मेरा बरबाद देख ले.
अल्फाज खो गये माअनीकी भीड में,
तन्हाईओंसे ये कलम आबाद देखले.
किचड भरे आलुदह तालाबका पानी,
खिलते कमलको वहीं शादाब देखले.
सर बांधे कफन आ गये फाके भरे साये,
वो भूख के दरियाओंको बेताब देख ले.
हश्र से पहेले हुई है एक हश्र है पैदा,
मजबुरियों की आंखका तालाब देखले.
(10फेब्रु.2008)