Dost Purane mere -
5th March 2016, 04:29 PM
DostooN Namaskaar,
Aaj ek khoobsurat peshkash padhne ko mili...socha aap sab k sath share kar li jay.....ye shayad " Ahmed Faraaz" sahab ki likhi hai......par ye vahi faraaz sahab hai ye my dave se nahi kah sakta..
तुज तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
शमा की लौ थी कि वो था मगर हिज्र की रात
देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे
तू भी ख़ुश्बू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार
बर्ग़-ए-आवारा की मानिंद ठिकाने मेरे
ख़ल्क़ की बे-ख़बरी है कि मेरी रुस्वाई
लोग मुझको ही सुनाते हैं फ़साने मेरे
आज इक और बरस बीत गया उनके बग़ैर
जिसके होते हुये होते थे ज़माने मेरे
चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-'फ़राज़'
बग़ैर तेरे कोई हालात न जाने मेरे
Not Mine
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