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Originally Posted by shakuntala vyas
मुश्किलों का हल ढूंढता हूँ
तेरी बेवफाई से बिखर गया मैं हज़ार टुकड़ो में ,
जिस टुकड़े में मेरा दिल था वो टुकड़ा आज भी ढूंढता हूँ,
रह के मेहफिलों में भी खामोश ,
अपनी मुश्किलों का हल ढूंढता हूँ ।
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कुछ जिद है ऐसी की तन्हाइ में जिना सुहाना लगता है,
और यहाँ तो सभी अपने अपने में जिए जा रहें हैं,
यह शहर भी मेरी तरह दीवाना लगता है,
सब ने बाग से फूल तोड़ कर घर के गुलिस्ते सजा डाले,
उजड़ा उजड़ा सा है चमन फिर भी सुहाना लगता है ।
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टूट जाता है इन्सान कभी प्यार में कभी टकरार में
पर जिन्दगी चलती रहती है अपनी मस्ती ,अपनी रफ्तार में,
खुद को चाहे बाँध लो जंजीरों से,
फिर भी मन भागता चला जाता है ,
और उसके पीछे मज़बूर इन्सान हँफता चला जाता है
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हाँ कहीं धूप है तभी तो छाँव है ,
दो पल की खुशी के लिए सारी जिन्दगी का लगा दाव है ,
पर रख के गिरवी जिन्दगी को और कया माँगे जिन्दगी से ,
दो आँसू हीं सही पर खरिदे है खुशी से ।
Nishikant Tiwari
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Thanks For Nice Sharing ............ !