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Originally Posted by KunaaL
अर्श*-ओ-दीवार-ओ-दर है नम मेरा..
इसमें घुटता है अब तो दम मेरा..
है वो अज्म-ओ-कमर** की दुन्या से..
मुझसे मिलता नहीं सनम मेरा.
तुम जो बदलो तो बदले शायद अब...
कब से बदला नहीं मौसम मेरा..
ख्वाब ही ख्वाब है मिरी किस्मत..
ख्वाब ही लज्जत-ए-अलम मेरा..
मिल गए होते कब के बढ़ता जो..
एक कदम तेरा एक कदम मेरा..
जो गए लौट कर नहीं आते..
कम करे कोई तो ये ग़म मेरा..
है 'सिफर' का वजूद ग़ज़लों से..
शौक से कर तू सर कलम मेरा..
*छत
** सितारे और चाँद
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कुनाल (सिफर)
19-11-2014
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तुम जो बदलो तो बदले शायद अब...
कब से बदला नहीं मौसम मेरा..
ख्वाब ही ख्वाब है मिरी किस्मत..
ख्वाब ही लज्जत-ए-अलम मेरा..
Kunaal ji bhut uttam bhut khub....mazaa aa gyaa...khush rahai.n..Raj...