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Originally Posted by brijbhan singh
भरे सावन में रेगिस्तान लगता है ,
मेरा घर मुझे खाली मकान लगता है।
जिस शक्श ने अंदर तक तोडा मुझे,
पता नहीं फिर भी क्यों वो मुझे मेरा भगवान लगता है।
शम्मा बुझ गयी है,अँधेरा हो चला है,
लोगो को मेरा घर शमशान लगता है।
नेमत न हुई खुदा की कोई भी हम पर,
मुझे खुदा भी अब इंसान लगता है।
अब जो भी प्रेम की बात करता है,
मुझे वो हर शक्श हैवान लगता है।
जहाँ हस रहा है ब्रज पर,
पर कम्बख्त शायर को इनका हसना भी सम्मान लगता है।[/size][/font]
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waahhh janaab kyaa khoob kalaam pesh kiyaa hai aap ne...
padhte padhte aapke ehsaason ke samandar me samaata chalaa gayaa bahot hi dil se likhi kavitaa hai ye..: kuch ek sher bahot hi zabardast they...
aate rahen likhte rahen
shaad.....