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Originally Posted by NakulG
हज़ल
सरे राह बारिश में छाता उड़ा कर
तेरा भीग जाना गज़ब हो गया
जो होली के दिन भी नहीं थी नहाती
तेरा कल नहाना गज़ब हो गया
तेरे सुर्ख़ होंठों पे ये मुस्कुराहट
नज़रबट्टुओं की हो जैसे बनावट
लहू पी के आई हो जैसे कहीं से
तेरा पान खाना गज़ब हो गया
खुली ज़ुल्फ़ है या हैं काली घटायें
जुओं का क़बीला तुझे दे दुआयें
ऐ मेरे मोहल्ले की सन्नी लियोनी
तेरा सर खुजाना गज़ब हो गया
वही क़ाफ़िये हैं वही ज़ाविये हैं
ज़मीनें हमारी क़िले आपके हैं
हमारी ग़ज़ल ही का मतला बदल के
हमीं को सुनाना गज़ब हो गया
मुहब्बत की बारिश का कैसा असर है
जिसे भी मैं देखूँ वही तर-ब-तर है
बुढ़ापे की दहलीज़ पर ऐसे-ऐसे
मेरा गुल खिलाना गज़ब हो गया
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Waah nakul g.....ye andaaz bhi khoob raha aapka..
Par iski sahi jagah humourous shayri me hai isliye ise vahaan moov kar rahi hun......
Aate rahiyega....
Madhu.....