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Originally Posted by NakulG
आज़ाद नज़्म
फूल नीले इस गली में
आज भी खिलते हैं लेकिन
अब नहीं वो बात इनमें
अब महक वैसी नहीं है
मैं न कहता था कि शायद
ये महक इनकी नहीं है।
ले गयीं हो तुम महक भी
साथ अपने
इस गली से उस गली में
हाँ सनम!
बादे सबा भी
अब नहीं ताज़ा है देखो
हैं बहुत मायूस झौंके
अब ये खिड़की
भी नहीं खुलती ख़ुशी से
ले गयीं मुस्कान इनकी
साथ अपने
इस गली से उस गली में
लॉन भी अब ख़ुश्क सा है
ओस भी पड़ती नहीं अब
चाँदनी जाने से पहले
घास भी रोती है शायद
सुब्ह नंगे पाँव इस पर
तुम नहीं चलती हो जब से
ले गयी हो शबनमी एहसास भी तुम
साथ अपने
इस गली से उस गली में
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Umdaa NakulG, aisa laga ki aapke ehsaas parde par meri aankhon ke aage chal rahe hai...umdaa nazm mubaarakbaad qubool farmaayein