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Originally Posted by jaymishra
हर लम्हा ख्वाहिश है कोई,
मेरी ज़िन्दगी
उम्र और मजबूरियों की
साज़िश है कोई।
वक़्त की दरारों को
पैबंदों में छिपाता हूँ,
ज़ख्मों के छींटें ना उड़े
इसलिए मुस्कुराता हूँ।
एक नाराज़गी सी है जाने किससे,
रंजिश सी लगती है साँसों से,
जिस्म में कैद जहां की सूरत हूँ मैं,
आयतों में लिपटी काफ़िर मूरत हूँ मैं।
जय मिश्रा (अंतर्प्रतिध्वनि)
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Waaaahhhh!!!! Swagat hai aapka....
Likhte rahiye