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तुम्हारे बिना आरती का दीया यह gopaldas neeraj ji -
8th August 2010, 02:26 AM
तुम्हारे बिना आरती का दीया यह
न बुझ पा रहा है न जल पा रहा है।
भटकती निशा कह रही है कि तम में
दिए से किरन फूटना ही उचित है,
शलभ चीखता पर बिना प्यार के तो
विधुर सांस का टूटना ही उचित है,
इसी द्वंद्व में रात का यह मुसाफिर
न रुक पा रहा है, न चल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
मिलन ने कहा था कभी मुस्करा कर
हँसो फूल बन विश्व-भर को हँसाओ,
मगर कह रहा है विरह अब सिसक कर
झरा रात-दिन अश्रु के शव उठाओ,
इसी से नयन का विकल जल-कुसुम यह
न झर पा रहा है, न खिल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
कहाँ दीप है जो किसी उर्वशी की
किरन-उंगलियों को छुए बिना जला हो?
बिना प्यार पाए किसी मोहिनी का
कहाँ है पथिक जो निशा में चला हो!
अचंभा अरे कौन फिर जो तिमिर यह
न गल पा रहा है, न ढल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
किसे है पता धूल के इस नगर में
कहाँ मृत्यु वरमाल लेकर खड़ी है?
किसे ज्ञात है प्राण की लौ छिपाए
चिता में छुपी कौन-सी फुलझड़ी है?
इसी से यहाँ राज हर जिंदगी का
न छुप पा रहा है, न खुल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
"
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Webeater
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Location: Bathinda-Punjab-India
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10th August 2010, 10:41 PM
Achi kavita hai.....................
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devil ! forgive me
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Join Date: Jul 2010
Location: MUMBAI PATIALA
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11th August 2010, 12:31 AM
तुम्हारे बिना आरती का दीया यह
न बुझ पा रहा है न जल पा रहा है।
भटकती निशा कह रही है कि तम में
दिए से किरन फूटना ही उचित है,
शलभ चीखता पर बिना प्यार के तो
विधुर सांस का टूटना ही उचित है,
इसी द्वंद्व में रात का यह मुसाफिर
न रुक पा रहा है, न चल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
मिलन ने कहा था कभी मुस्करा कर
हँसो फूल बन विश्व-भर को हँसाओ,
मगर कह रहा है विरह अब सिसक कर
झरा रात-दिन अश्रु के शव उठाओ,
इसी से नयन का विकल जल-कुसुम यह
न झर पा रहा है, न खिल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
कहाँ दीप है जो किसी उर्वशी की
किरन-उंगलियों को छुए बिना जला हो?
बिना प्यार पाए किसी मोहिनी का
कहाँ है पथिक जो निशा में चला हो!
अचंभा अरे कौन फिर जो तिमिर यह
न गल पा रहा है, न ढल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
किसे है पता धूल के इस नगर में
कहाँ मृत्यु वरमाल लेकर खड़ी है?
किसे ज्ञात है प्राण की लौ छिपाए
चिता में छुपी कौन-सी फुलझड़ी है?
इसी से यहाँ राज हर जिंदगी का
न छुप पा रहा है, न खुल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
Amazing keep it up
07666027379,09041116001,09876442643,
09417142513,09914097007,09625494246
Mail: parveenkomal@parveenkomal.com
www.parveenkomal.com/blog
{ BURA NA SUNENGE BURA NA DEKHENGE BURA NA BOLENGE
ACHHA LIKHENGE,KOI BURA KAHEGA TO KHUD KO TATOLENGE }
Wohi rizq deta jahaan ko , wohi zaat sab se azeem hai
Meri muflisi pe na hans ke wo , tera taaj sar se giraa na de
}QadeerToopchi{
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Registered User
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Posts: 337
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11th August 2010, 03:36 PM
Quote:
Originally Posted by parveen komal
तुम्हारे बिना आरती का दीया यह
न बुझ पा रहा है न जल पा रहा है।
भटकती निशा कह रही है कि तम में
दिए से किरन फूटना ही उचित है,
शलभ चीखता पर बिना प्यार के तो
विधुर सांस का टूटना ही उचित है,
इसी द्वंद्व में रात का यह मुसाफिर
न रुक पा रहा है, न चल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
मिलन ने कहा था कभी मुस्करा कर
हँसो फूल बन विश्व-भर को हँसाओ,
मगर कह रहा है विरह अब सिसक कर
झरा रात-दिन अश्रु के शव उठाओ,
इसी से नयन का विकल जल-कुसुम यह
न झर पा रहा है, न खिल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
कहाँ दीप है जो किसी उर्वशी की
किरन-उंगलियों को छुए बिना जला हो?
बिना प्यार पाए किसी मोहिनी का
कहाँ है पथिक जो निशा में चला हो!
अचंभा अरे कौन फिर जो तिमिर यह
न गल पा रहा है, न ढल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
किसे है पता धूल के इस नगर में
कहाँ मृत्यु वरमाल लेकर खड़ी है?
किसे ज्ञात है प्राण की लौ छिपाए
चिता में छुपी कौन-सी फुलझड़ी है?
इसी से यहाँ राज हर जिंदगी का
न छुप पा रहा है, न खुल पा रहा है।
तुम्हारे बिना आरती का दिया यह
न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।
Amazing keep it up
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thanks a lot
sada khush raho
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