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Originally Posted by Bhrung
शराब ना शबाब है, करें बसर तो किस तरह
कबाड में बिके सुखन, करें गुजर तो किस तरह
न कान हैं खुले यहाँ, न द्वार मन के हैं खुले
यहाँ किसी की शायरी करे असर तो किस तरह
वह रेत में उठा के नक्षेपा कभी के गुम हुए
कटे तवील ज़िंदगी कि रहगुजर तो किस तरह
अगर घुली हो तलखियाँ शराब में, शबाब में
हरेक लफ्ज़ में भरा न हो ज़हर तो किस तरह
न आँख में नमी ज़रा, न ओस दिल में है 'भँवर'
के बीज इस ज़मीन में बने शजर तो किस तरह
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Bahut umdaa likha hai aapne, khoob ehsaas hue hai aur aapki is ghazal ko mast ka salaam
Yunhi likhte rahiYe aur aate rahiYeGaa