या हटा दे बादलों को, या थकी लौ को बुझा
कब तलक लड़ते रहेंगे हम दिये तूफान से?
औरतें बेखौफ होकर चल नहीं पाती यहाँ
कब मिटेगा दाग यह रुखसार-ए-हिंदोस्तान से?
बहुत खूब लिखा है. कुछ ऐसी समस्याएं इस दुनिया में हैं जिनको दूर करने के लिए इच्छाशक्ति की ज़रूरत है. उजाले की आस में हम सभी हैं. कभी तो जाकर सुबह होगी. कभी तो लोग जागेंगे. शुरुआत खुद से ही करनी होगी.