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एक दुआ लिख दुं*** मुहम्मदअली ‘वफा’ -
15th June 2008, 11:54 AM
एक दुआ लिख दुं*** मुहम्मदअली ‘वफा’
अब उनके नामसे ही आज में एक बयां लिख दुं.
जुनु को अकल और , हिकमतकी जबां लिख दुं
बुखारा और समरकंद, दे दिये मुफ्लीस शायरने,
बलासे कुछ भी कोइ बोल दे, सारा जहां लिख दुं.
खुली वो झुल्फ तो ,फिक्रे नाजुकपे गुमां गुजरा,
बादल की अदा लिख दुं या काली घटा लिखदुं.
वो आए जो कतल करने ,लिये शमशीर बरहीना,
जबीं पे महेरबा लिख दुं, ब तेगे पासबां लिख दुं.
ये गुल है कि महकते गुलके रुखसारका परतु,
हवा की उंगलियां ले के कहो तो कहकशां लिखदुं.
समझता हुं में उलझन ये मर्जे नागहानी में,
दरदका नाम भी लिख दुं, कहो तो एक दवा लिख दुं.
कहां तक गर्द छानोगे ‘वफा’ जंगल बयाबांकी,
जरा आओ करीब मेरे तुम्हे में एक दुआ लिख दुं.
16June2008
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दुश्मन भी बदलदुं.__ मुहम्मदअली’वफा’ -
28th June 2008, 08:58 AM
दुश्मन भी बदलदुं.__ मुहम्मदअली’वफा’
चेहरा भी, बदलदुं औ,र चिलमन भी, बदल दुं,
क्या कह रहे हो आज तुम, दुश्मन भी बदल दुं.
हम तो खिलेंगे वहां बंझर हो या सहरा,
मुमकीन नहीं है दोस्त में उपवन भी बदल दुं.
बहता रहा में तो कभी जंगल बयांबां में,
फितरत नहीं मेरी कि पहरन भी बदलदुं.
मासुमियत के बर्ग से जीसका निखार है
मुमकिन है कैसे कि बचपन भी बदलदुं.
मेरी वफा का साथ रहे गा अदम में भी,
में वो नहीं जो डरके मसक्न भी बदल दुं
8जुन2008
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28th June 2008, 10:48 PM
Accha Laga k aap jaise log aaj b hai......
Bahut accha likha hai apne.
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जाम से निकले _ मुहम्मदअली’वफा’ جام سے نکلے_ م -
9th July 2008, 09:27 AM
जाम से निकले _ मुहम्मदअली’वफा’
तमन्ना थी यही कुर्रा हमारे नाम से नि कले
एक एक कतरा खूनका इस जाम से निकले
यहां सूरज हमारा डूबताहो उनकी वादी में
और चान्द उनका बस हमारे बाम से निकले
جام سے نکلے_ محمد علی۔وفا
یہی تھی تمنُا قرُع ھمارے نام سے نکلے
ایک ایک قطرہ خون کا اس جام سے نکلے
سورج ہمارا دُبتا ہویہاں اُن کی وادی سے
اور چاند اُنکابس ہمارے بام سے نکلے
محمد علی۔وفا
8thJuly008
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9th July 2008, 06:27 PM
Quote:
Originally Posted by wafa ali
जाम से निकले _ मुहम्मदअली’वफा’
तमन्ना थी यही कुर्रा हमारे नाम से नि कले एक एक कतरा खूनका इस जाम से निकले
यहां सूरज हमारा डूबताहो उनकी वादी में
और चान्द उनका बस हमारे बाम से निकले
جام سے نکلے_ محمد علی۔وفا
یہی تھی تمنُا قرُع ھمارے نام سے نکلے
ایک ایک قطرہ خون کا اس جام سے نکلے
سورج ہمارا دُبتا ہویہاں اُن کی وادی سے
اور چاند اُنکابس ہمارے بام سے نکلے
محمد علی۔وفا
8thJuly008
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very well written.ye padh kar muje kisi ki yaad aa gayi.toooooooooo good
AARYAN...........................
Chehre pe haseen chaa jati hai
Aankhon main suroor aaa jata hai
Jab tum mujhe apna kahte ho
Apne pe ghuroor aa jata hai.......
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लयला नहीं ये___ मुहम्मदअली’वफा’ -
31st July 2008, 08:18 AM
लयला नहीं ये___ मुहम्मदअली’वफा’
तेवर बदलके आज चल रहे हो तुम.
अपनी ही आगमें जल रह्र हो तुम.
लफ्फाजीकी आदत जाती नहीं तुमसे
आहट पर भी छुरियां मल रहे हो तुम.
वकत के धाने पे उल्झाये हुए से
साया भी अपना देखके डर रहे हो तुम.
अपने ही नकुश को चेलेंज दे बैठे ,
आयने के साथ भी लड रहे हो तुम.
काटा है कोइ क्या तुझे पागलसा कुत्ता?
बोलनाथा जहां ,वहां भस रहे हो तुम.
लयला नहीं पागल,ये तस्वीरे लयाला है,
होश के नाखून लो, क्यों मर रहे हो तुम
कानुने क़ुदरत भी कोइ चीझ है ‘वफा’
दीवानेहो कानुन से लड रहे हो तुम.
30जुलाई2008
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गुजरना है कहां॒ - मुहम्मदअली'वफा' -
19th August 2008, 09:44 AM
गुजरना है कहां॒ - मुहम्मदअली'वफा'
हर गली हर शहर से गुजरना है कहां
सिम्त कोई राह की भी बदलना है कहां
हां चलेंगे यहां गैरतकी रस्सी थाम कर
गिर गये गर कभी तो संभलना है कहां
यार के कुचे में गर पड गये ये कदम
चाहे फटे सब गरेबां फिर निकलना है कहां
एक तो मौका है कि धडकता रहे शीशए दिल
एक धक्का आएगा फिर धडकना है कहां
हम तो चले थे 'वफा' एक अपनी चालसे,
हर मोड पे रुकना और सवंरना है कहां
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मस्ताने चल दिये__मुहम्मदअली’वफा’ -
19th August 2008, 10:02 AM
मस्ताने चल दिये__मुहम्मदअली’वफा’
तीश दर्दोंकी भरे पयमाने चल दिये.
खोल कर अपने ज़खम दीवाने चल दिये.
सिम्तका कुछ भी नथा उनको कोइ पता
धुनमें अपनी खडे अनजाने चल दिये.
दूर कुछ अपने तमाशाबीं बन कर रहे
वक्त का खंजर चला बेगाने चल दिये.
रेतका छोडा यही चमकीला समनदर
मैकश रहे सर धुनते मयखाने चल दिये.
अपनी खूशी से आये थे न जायेंगे ‘वफा’
वकतकी चादर सिमट मस्ताने चल दिये.
مستانے چل دےء۔۔۔۔محمد علی وفا
تیش دردوں کی بھرے پیمانے چل دےء
کھول کر اپنے جخم دیوانے چل دےء
سمت کا کچھ بھی ن تھا اُُن کو کوئ پتہ
دُھن میں اپنی کھڑے انجانے چل دےء
دور کچھ اپنے تماشہ بیں بن کر رہے
وقت کا خنجر چلا بیگانے چل دےء
ریت کا چھورا یپی چمکیلا سمندر
میکش رپے سر دھونتے میخانے چل دےء
اپنی خوشی سے آےہ تھے ن جاےنگے وفا
وقت کی چادر سمت مستانے چل دےء
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खूनके आंसु बहाना है_मुहम्मदअली’वफा’ -
28th October 2008, 04:04 AM
खूनके आंसु बहाना है_मुहम्मदअली’वफा’
मिलने मिलानेका यहां बस एक बहाना है.
सच पूछिये तो ये मरासिम निभाना है.
हां छोडना उसको पडेगा एक दिन यकीनन
गर पास तेरे लाख कारूनी खज़ाना है.
है उछलता तुं आज लाखों हाथ पर यहां
एक दिन यहांसे चारके कंधो पे जाना है
जो छोड देतें है ज़मानेके तकाजे को
बस ठोकरों में उनकी तो सारा जमाना है.
समझे न जो गर्दीशे जमानेका मुअम्मा
आखिर कभी कुछ खूनके आंसु बहाना है.
छोडो ‘वफा’ अब तो गिला उनके फसानेका
एक दिन यहां सब को मिट्टीमें दबाना है.
27ओकटोबर2008
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शीशेकी एक दिवार_मुहमदअली वफा -
20th November 2008, 08:49 AM
शीशेकी एक दिवार_मुहमदअली वफा
साया सूरजका खूब ये सोया है रात भर
उसको जगाओ अब जरा कंदीलें तोड कर
रंगत बदल बदल कर आती है रोज ये
अब चांदनी की चालकी रोको कभी सफर
दिल बुझ गया सुनके लागिर बहाने सब
आती नहीं ये रास तो फिर छोड् दो डगर
शीशेकी एक दिवार के पीछे खडे हैं सब
कैसे छूपायें मुंहको दिखलाओना हुनर
अब तो गरेंबा फटनेके दिन भी नहीं रहे
मजनु खडा है सामने लैला गई मुकर
ये भी कभी शान से ईतराथा यहां
तूटा पडा देख लो मलबेका ये नगर
19नवे.2008 टोरन्टो
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जब अयां हुआ__मुहम्मदअली वफा -
26th November 2008, 10:07 AM
जब अयां हुआ__मुहम्मदअली वफा
अहले नजरसे भी ना हरगिज बयां हुआ
जो राजमें था राज वो जब अयां हुआ
तकदीरसे राजी ब रजा होनात्तो था मगर
तदबीर जो आई तो एक मुद्दआ हुआ
वरन मनाता खैर खिजरकी वहां कोन
अच्छा हुआ के वकत पर मुसा जुदा हुआ
हमसे क्या पूछ्ते हो जरा उनसे पूछिये
हमसे जुदा हुए तो क्या मांजरा हुआ
कलियोने जब चमनसे नीकलनेकी थाम ली
गुलचीं पे क्या गुजरी दर्दे नागहां हुआ
25thNove.008
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आशियां बदला__मुहम्मदअली वफा -
19th December 2008, 04:39 AM
आशियां बदला__मुहम्मदअली वफा
न तु बदला न में बदला न ए आस्मां बदला
बता कुछ्तो गमे दौरां फिर क्युं ये जमां बदला
बदलनेसे मौसम के बदल ती है फिझां सारी
बदलती क्या शमां य, परवानो का निशां बदला
गिरे तु बावली बन कर ,खिरमन सलामत हो?
बता तुने निशां बदला के उसने आशियां बदला
बदलने की जरूरत क्या हमे,हमारी सिम्त है वोही
अलग है बात उनकी देखके बस रास्ता बदला
बदने न बदलने में ‘वफा’ हम तो रहे यकसु
न पूछो यारको कि कैसे ये चहेरा नुमां बदला
18डीसे.2008
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आशियां बदला__मुहम्मदअली वफा -
19th December 2008, 07:12 AM
आशियां बदला__मुहम्मदअली वफा
न तु बदला न में बदला न ए आस्मां बदला
बता कुछ्तो गमे दौरां फिर क्युं ये जमां बदला
बदलनेसे मौसम के बदल ती है फिझां सारी
बदलती क्या शमां य? परवानो का निशां बदला
गिरे तु बावली बन कर ,खिरमन सलामत हो?
बता तुने निशां बदला के उसने आशियां बदला
बदलने की जरूरत क्या हमे,हमारी सिम्त है वोही
अलग है बात उनकी देखके बस रास्ता बदला
बदलने न बदलने में ‘वफा’ हम तो रहे यकसु
न पूछो यारको कि कैसे ये चहेरा नुमां बदला
18डीसे.2008
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आंसुओंमें पलता है—मुहम्मदअलीवफा -
28th December 2008, 04:54 AM
आंसुओंमें पलता है—मुहम्मदअलीवफा
जलातें हैं उसे तो लोग और वो तो जलता है
परवाने को क्या सूझी के अपनी जान धरता है
उसीकी रोशनी में लाखो करोंडॉं लोग चलतें है,
और सूरज बिचारा खुद अंधेरे में ही चलता है.
उड जायेगा बनके भांप ये खुली हवाओं में
मगर पहले ये पानी उबलता है.जलता है
खो जाता है पहले ये कीसीकी आंख के भीतर
उसी आंखसे फिर ये ईश्क आंसुओंमें पलता है.
फैला शामका जंगल बता अब हम कहां जाये
हमं तु छोड तारीकीमें कहां जाके ढलता है.
26डीसे.2008
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8th January 2009, 12:43 PM
नींदकी आंखोमें__मुहम्मदाली वफा
[ आओ अज़ीज आओ शराबको घोलो.
ये नींदकी आंखोमें खवाबको घोलो!
ये कीस फिकरमें जाने अब जाग रही है?
आके कोइ पलकों उपर जवाबको घोलो.
लंबा है फसाना और लंबे सभी किस्से
जो आखरी रह गया, हिसाब को घोलो.
पेचो खम अलफाज़के शर्मिन्दा हुए हं
अब तो उठो लाओ, कोइ किताबको घोलो!
कुछ बहरे असकनान में खामोशी है छाइ
उठते हुए ये मौज के सैलाबको को घोलो.
8जान..009
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दिल बहलता नहीं_मुहम्मदाली वफा -
11th January 2009, 08:52 AM
दिल बहलता नहीं_मुहम्मदाली वफा
कीसी औरकी बारात से दिल बहलता नहीं
खूशियोंकी खैरात से दिल बहलता नहीं
बरसनेके ज़मानेमें बरसते तो क्या होता?
बे मौसमी बरसात से दिल बहलता नहीं
कुछ और कहो,खूब कहो ,रंगभी नये हो
ये बे तूके ईरशाद से दिल बहलता नहीं
ये दिलकी घुंटन बढ गई दिदारसे तेरे
ये बे रूखीसी रात से दिल बहलता नहीं
अब तेरी कहानी बनी है शोरो शराबा
अब कीसीभी बात से दिल बहलता नहीं
11जनवरी2009
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दोडना होगा_मुहम्मदाली वफा -
16th January 2009, 12:23 PM
दोडना होगा_मुहम्मदाली वफा
सांसकी रस्सीका नाता तोडना होगा
मिलना है तो बोझ कुछ छोडना होगा
बारीक सी रस्सी पे लटका है खिलौना
दर्द तो होगा मगर ये फोडना होगा
दिखायी नहीं देता गर मौजुद है यहां
नजरों के जाहिर जाविया मोडना होगा
चलनेसे अब काम चलेगा नहीं ये दोस्त
मंजिल वो बहुत दूर है दोडना होगा
जीस मज़िलोंसे भागतें है दूर सब ‘वफा’
ताअल्लुक उसीके रास्तेसे जोडना होगा
16जान.2009
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गंगाका धारा चाहिये__मुहम्मदअली वफा -
4th February 2009, 03:17 AM
गंगाका धारा चाहिये__मुहम्मदअली वफा
अब तो आंसुओको बहाने को सहारा चाहिये
दिलको तडपाने के लिये कोइ शरारा चाहिये
मुद्दत हुई पत्थर भी रुकते नहीं बरसात के
गैर तो कैसे ये करें ये , कोई हमारा चाहिये
नोंच लेंगे अपने हाथॉ , अपने दांतोसे उसे
कोई बैठा राह पर बेघर बिचारा चाहिये
गोलिंयोंसे भूनते है एक ही जगह लाकर उसे
मुल्क है अपना, कोइ किस्मतका मारा चाहिये
ईनके सब पापों को तो अब कैसे धोएंगे यहां
लाओ झमझम वफा, या गंगाका धारा चाहिये
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किस्मतका मारा है__मुहम्मदअली वफा -
14th February 2009, 10:45 AM
किस्मतका मारा है__मुहम्मदअली वफा
किस्मतका मारा है तन्हा ही छॉड दो.
ताजा जखम पाया है पिन्हा ही छोड दो
अब जुनु बढ गया है हद से भी आगे,
कपडॆ भी फाडता है ,नंगा ही छोड दो.
जलदी अगर करनी है तो सांस रोकलो,
मरके गर जीना है तो मरनाही छोड दो
मरहले आयेंगे कुछ जंगल बयांबां के,
ये ईशक के मर्जपे ढलना ही छोड दो.
उठ्ते रहेंगे धुएं तो दिलो,जिगरसे ,वफा,
मानलो ईस ईश्कमें जलानाही छोड दो
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ईरादा है_मुहम्मदअली वफा -
17th February 2009, 10:13 AM
ईरादा है_मुहम्मदअली वफा
भूली हुई सी एक बात का ईरादा है
नशेमें चुरथे वो रातका ईरादा है
आयनेमें भूल गये तुम चहेरा अपना
क्या हुस्न की खैरात का ईरादा है
रहे चुप तो धुंवासा उठा रगरग से
क्या करें बहरोंसे फरियादका ईरादा है
हुई शाम तो सूरज ने भी मुंह फेरा
दिये के दिलमें जुल्मात का इरादा है
मुद्दतसे आरी रहे गुफ्तार से वफा
दर्दे दिलको अब ईर्शादका ईरादा है
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हर रोज़ रोजे ईद है_वफा -
20th February 2009, 07:32 AM
हर रोज़ रोजे ईद है, हर रात शबे बारात
हर ज़ुम्आ लाती है खुशियोंकी बरकात
क्या बला होती है वेलेंटाईन ये दोस्तो
अपनी पुरी जिंदगी है प्यारकी बरसात
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ढलता नज़र आया_मुहम्मदअली वफा -
3rd March 2009, 11:23 AM
ढलता नज़र आया_मुहम्मदअली वफा
तु हर ऎक बातमें यकता नज़र आया
में गरीब हर जगह तनहा नज़र आया
में तो सिमत गया अज़मत के बार से
साया अना का कुछ बढता नज़र आया
मुफ्लिस के मुकद्दरमें थे दो चार ही कतरे
पानी मिलाके वो तो ज़ुमता नज़र आया
तुने दिया अज़मते अक्वामका परचम
छोडा तुझे तो वो भी गिरता नज़र आया
रोशनी कि आड में कुछ शान थी उनकी
सूरज़ ढला तो वो भी ढलता नज़र आया
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मीरको छेडा_मुहम्मदअली वफा -
11th March 2009, 01:06 PM
मीरको छेडा_मुहम्मदअली वफा
तुने हमारे दिलकी ये ज़ंज़ीरर्को छॆडा
युं समज़लो शहदकी एक भीडको छेडा
बचनेका तुम्हारा कोइ बहाना नहीं रहा
नीकलाथा कमानोंसे उस तीर को छेडा.
खूनके आसु सिवा उम्मीद कया होगी
आये जो तुम आज़, मेरी पीडको छेडा
अपनेही हाथों आपने खुदको है मिटाया
दिलमें बनी थी आपकी तस्वीरको छेडा
ये छेडनेके सिलसिला र्रुका नहीं वफा
गालिबको छेडा तो कभी मीरको छेडा
11मार्च2009
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रबके खजानेसे---मुहम्मदअली वफा -
25th March 2009, 07:34 AM
रबके खजानेसे---मुहम्मदअली वफा
गिला तुमसे नहीं अबतो रहा सारे जमाने से
हुएं सब खूश तस्वीरे जिगरकोतो दिखाने से
यहां फिरते रहे हमतो ज़खम अपना छुपाये से
किया तश्हीरका सौदा तुने कोई बहानेसे
हमारी रेंगती तन्हाईयों का हाल ना पूछो
हमारे बागका दामन भरा पाया विरानेसे
कभी फाडा गरेबां को कभी खूने जिगर टपका
गुजर कैसे हुई पूछो नही अब तो दिवाने से
नहीं मंज़ूर अब हमको हमारे जर्फ का सौदा
मिलाहै ये हमें गौहर यहां रबके खजानेसे
हमारे खूनसे सिंचा बडी दीक्कत मुशक्कत से
गुलिस्तां मिट नहीं सकता बातिलके मिटाने से
24thmarch2003
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नहीं मीला__मुहम्मदअली वफा -
31st March 2009, 12:48 PM
नहीं मीला__मुहम्मदअली वफा
सच पूछिये तो कोइ बहाना नहीं मीला
गम को सजानेका जमाना नहीं मीला
हम भी चीमटकर उसे फूट कर रोते
तेरे शहरमें कोइ दिवाना नहीं मीला
आज गलियोंमें खामोशी सी सजी है
बातों को उडानेका बहाना नहीं मीला
किसका करे चर्चा करे तनकीदभी कहां
अपने थे सभी लोग बेगाना नहीं मीला
आज मजनुने शहरमे ही दरद रोया
शायद उसे आज विराना नहीं मीला
1एप्रील 2009
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मोका नहीं_मुहम्मदअली वफा -
10th April 2009, 07:12 AM
मोका नहीं_मुहम्मदअली वफा
अब तो ईंतेज़ार का मोका नहीं
शायद कोइ प्यारका मोका नहीं
अब तक्ल्लुफात को छोड दो
अब कोई इसरारका मोका नही
आख्ररी ये घूंट है इस ज़ाम का
अब तो इनकारका मोका नहीं
तहज़ीब इसारे, किनायेकी खिली
इस जगह इज़हारका मोका नहीं
खूशनवाईकी कोई तो बात हो
दिलके अब आज़ारका मोका नहीं
9एप्रील2009
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12th April 2009, 10:39 AM
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नाव कागज़की__मुहम्मदअली वफा -
22nd April 2009, 01:43 PM
नाव कागज़की__मुहम्मदअली वफा
अब नाव कागज़की चलाना है दोस्तो
एक मुश्त पानी को सताना है दोस्तो
बहेरी की जमात एक दर पे खडी है
आलाप तो गुंगेको सुनाना है दोस्तो
वो रुठे नहीं एक बहाना बनायें है
लतीफ से वादेसे मनाना है दोस्तो
पत्त्थर पडा है देखो हमारेही राहमें
हिकमत के हाथों से हटाना है दोस्तो
तदबीरकी तहरीरके बदनुमासे दाग
तकदीरके पीकरसे मिटाना है दोस्तो
21अप्रिल2009
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उडते रहो_मुहम्मदाली वफा -
4th May 2009, 12:43 PM
उडते रहो_मुहम्मदाली वफा
फर्द हो या कारवां चलते रहो
जिंदगीके रास्ते भरते रहो
मंज़िलोंसे भी है आगे मुकाम
शाहीन बन कर हो सके उडते रहो
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Aapki dost
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4th May 2009, 04:12 PM
bohat accha likhte hain aap wafa ali saheb.....abhi inme se kuch hi posts padha hai maine..mujhe afsos hai ke aapko sdc per accha response nahi mil raha hai....khair koi baat nahi...aap yuhi likhte rahiye..INSHAALLAH bohat jald log aapki post padhne lagenge.....aapki ek baat mujhe bohat pasand hai,aap apni saari creation ek hi thread me likhte hain, isse padhne walon ko aasani ho jaati hai.....yuhi likhte rahiye.....
khush rahiye
zainy
Zainy
PalkoN ki baand ko tod ke daaman pe aa gira
Ek aaNsu mere zabt ki tauheen kar gaya...
Nm
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जब बे जबां किये__मुहम्मदअली वफा -
5th May 2009, 07:13 AM
जब बे जबां किये__मुहम्मदअली वफा
[ B]उतरे हैं नक़्स दिलमें उसको बयां किये
हमने हमारे जख्मको कुछ युं अयां किये.
पेरों में बंधी हुई ये जंज़ीरे बोल उठी
तुमने हमारे लफ्ज़को जब बे जबां किये.
शिकवेकी न आदत है, न शोरो शराबा
हमतो चलेगें हकका माअना बयां किये
चेहरेको खुश्क देख कर बद गुमां न हो
आंखोंसे आंसुओंके दरिया रवां किये
खामोशी अपनी वफा, रंग लायेगी एक दिन
रुक सकता नहीं लावा ये अब युं मना किये.
4मे2009[/B ]
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جب بے زباں کےء__محمدعلی وفا -
5th May 2009, 07:49 AM
جب بے زباں کےء__محمدعلی وفا
اُترے جو نقْس دِل میں اُسکو بیاں کےء
ہمنے ہمارے جَخم کو کُچھ یوں ایاں کےء
پَیڑوں میں بندھی ہوئ زنزیر بول اُٹھی
تُمنے ہمارے لفظ کو جب بے زباں کےء
شِکوہ کی نہ آدت ہَے،نہ شورو شرابا
ہمتو چلے گیں حق کا معنہ بیاں کےء
چہرےکوخشک دیکھ کر بد گُماں نہ ہو
آنکھونسے آنسُونکے وفا درِیا رواں کےء
خاموشی اپنی وفا رنگ لاےءگی ایک دِن
رُُک نہِیں سکتایہ لاوا اب یوں منا کےء
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लोट ज़ा__कुहम्मदअली वफा -
6th May 2009, 08:11 AM
लोट ज़ा__कुहम्मदअली वफा
अब इसी बाज़ार से तु लोट जा.
दर्द के आज़ार से तु लोट जा
ये मुअम्मा बरसों से चलता रहा
लफ्जकी तकरार से तु लोट जा.
ये दवांएं काम अब देगी नहीं
गमज़दा बिमार से तु लोट जा.
कोई हुनर इंसानियतका तो दिखा
बिगडे हुए किरदारसे तु से लोट जा.
गर खडा कर सकता नहीं ये मकां
गीरती हुइ दीवारसे तु लोट जा
Last edited by wafa ali; 6th May 2009 at 08:14 AM..
Reason: एरोर्
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ख्वाबों के परिन्दे__मुहम्मदअली वफा -
7th May 2009, 08:44 AM
ख्वाबों के परिन्दे__मुहम्मदअली वफा
तन्हाईकी गारों में है यादों के परिन्दे
और यारके हाथोमें है वादों के परिन्दे
फूलोंके शगूफे उठाके ले गया गुलचीं
रहे बागबांके हाथमें काटों के परिन्दे
ये अल्विदाकी रस्मभी अजीब है यारो
उडते है चारों औरसे हाथों के परिन्दे
मुद्दत हुई कोई गिला सुन नहीं पाया
क्या सर्दहो गयें है अब सांसों के परिन्दे
वाके ही उसको कोइ भी पाया नहीं पकड
आंखो में बसे रहतें हैं ख्वाबों के परिन्दे
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तु चुनता रहा—मुहम्मदअली वफा -
8th May 2009, 03:29 AM
तु चुनता रहा—मुहम्मदअली वफा
बढते बढते आस्मां तक बढ गया
जब तेरा जिस्म कुछ् धूंआ हुआ
ये तमन्नाकी उम्र तो खिझर बनी
दो चार दिन उम्र का दिया जला
चल्तें चलतें मंझिलें मिल गई
काफले की फिक्रमें तु रुक गया
दो चार ईंटभी साथ में आई नहिं
जिन्दगीभर तु जीसे चुनता रहा
चला वफा अब अल्लाह-अल्लह करें
किस्सए पारीना को तो खूब रटा
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शेर__मुहम्मदअली वफा -
9th May 2009, 04:02 AM
शेर__मुहम्मदअली वफा
अब तु वापस नहीं आ सकता मेरे अज़ीज़
काश तेरी यादको भी रोकता मेरे अजीज
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आस्मांका छत__मुहम्मदअली वफा -
10th May 2009, 10:56 AM
आस्मांका छत__मुहम्मदअली वफा
दीवार आशरेकी एक गीर गई
छप्पर उम्मीद्काभी उड गया
अच्छा हुआ आसमांका छत मीला
पूरे आलममें हमारा हक हुआ
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एक हसदकी आगमें—मुहमदाली वफा -
11th May 2009, 10:55 AM
एक हसदकी आगमें—मुहमदाली वफा
एक हसदकी आगमें लकडी जली
कोयला बनके भी वो जलती रही
हसिलमें क्य हुआ है खूब अयां
राखकी सुरतमें वो उडती रही
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दीवार हटा दो—मुहम्मदअली वफा -
13th May 2009, 08:50 AM
दीवार हटा दो—मुहम्मदअली वफा
मानी व मतलबका ईसरार हटादो
अल्फाजके शीशेका ईजहार हटा दो
अंखको मोका दो ,कुछ तो ये कहे
खामोशीकी बीचसे दीवार हटा दो
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हट जाओ ए ज़ालिम__मुहम्मदअली वफा -
13th May 2009, 01:47 PM
हट जाओ ए ज़ालिम__मुहम्मदअली वफा
बीचमें आनेसे हट जाओ ए ज़ालिम
मामला है प्याrरका शरमाओ ए ज़ालिम
डालोगे हाथ आगमें जलकर ही रहोगे
प्यारका लावा है ये रुक जाओ ए जालिम
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