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खुद नुमाई के लिये—मुहम्म्दअली वफा -
26th January 2010, 12:17 AM
खुद नुमाई के लिये—मुहम्म्दअली वफा
अब ऐसी महेफिलोंसे दिल रूठ गया है दोस्त
हर एक है इस दौड्में खुद नुमाई के लिये
कोई दर्दे दिलकी नहीं मिलती यहां चारागीरी
हर एक लब तिशना है सहरा नवाईके लिये
25जन्यु.2010
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دیکھا نہیں جاتا ۔۔۔مُحمّد علی وفا -
1st February 2010, 03:20 AM
دیکھا نہیں جاتا ۔۔۔مُحمّد علی وفا
سچ پوچھیہ تو یہ سماں دیکھا نہیں جاتا
ٹوٹا ہُوا یہ میقدہ دیکھا نہیں جاتا
اُلجھن میں ہے سب منزلیں لُوٹے ہوےء راہی
ملبے تلے کا یہ دھُواں دیکھا نہیں جاتا
سب کُچھ لُوٹا کے جب چلے گھر بار سب اپنا
ٹوٹا ہُوا اُسکا مکاں دیکھا نہیں جاتا
مُمکِن نَِھیں اب لوٹنا ساقی قسم تیری
مُجھسے سبُو کا ٹوُٹنا دیکھا نہیں جاتا
زُلفیں ہٹاوُ تو ذرا دیکھین وفا قاتِل
یہ آنکھ میں خُنِ رواں دیکھا نہیں جاتا
देखा नहीं जाता_मुहम्मदअली वफा
सच पूछिये तो ये ,समां देखा नहीं जाता
तूटा हुआ ये मयकदा देखा नहीं जाता
उल्झनमें है सब मंझिलें ,लूटे हुए राही
मल्बे तले का ये धुआं देखा नहीं जाता
सब कुछ लूटाके जब चले घर बार वो अपना
तूटा हुआ उसका मकां देखा नहीं गया
मुमकिन नहीं अब लौटना साकी कसम तेरी
मुझसे सबूका तूटना देखा नहीं जाता
झूल्फें हटाओ,तो जरा देखें वफा कातिल
ये आंख में खूने रवां देखा नहीं जाता
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खुराफात मत करो__मुहम्मदअली वफा -
5th February 2010, 12:54 PM
खुराफात मत करो__मुहम्मदअली वफा
कहते हैं अब मुझसे वो कि बात मत करो
बोलो! मगर उनसे मुलाकात मत करो
अपने तआरूफ से कुछ बेगाना ही रहना
महेकनेकी ईस चमनमें जुर्रात मत करो
कांटोमें फूलकी तरह हसना मना यहां
बुलबुलकी तरह कोई खुराफात मत करो.
मानलो यहां हमारी बात तुम वफा
चाहो तो दिलमें उसपर एतेमाद मत करो
5फेब्रु.2010
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5th February 2010, 02:49 PM
झूल्फें हटाओ,तो जरा देखें वफा कातिल
ये आंख में खूने रवां देखा नहीं जाता.............
मानलो यहां हमारी बात तुम वफा
चाहो तो दिलमें उसपर एतेमाद मत करो
Janab aapke yeh dono gazal ke maqte la jawab lage, dusra wala to behad khoob aur yakinan umdaa hai......
Likhate rhiaye,.
Khyuda Hafez....
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अहसान फरामोश—मुहम्मदअली वफा -
7th February 2010, 01:02 PM
वो इस लिये हमसे अब नाराज़ हो गये
हम दो कदम उनसे कुछ आगे निल गये
अहसान फरामोश—मुहम्मदअली वफा
गर अहसान मंद बन नहीं सकते तो माफ है
अहसान फरामोशकी जमाअत में तो ना घूसो
मामला मुकद्दरका तो हरएअक के साथ है
मुकद्दरसे पैदा हुए तो क्या मां बापको छोडो?
मोहसीन का जो शुक्र अदा कर नहीं सकता
वो खुदा का शुक्र से भी है आरी है दोस्तो
तुम नहीं बन सकते किसेके अब यहां वफा
फिर खुदाके बनने की भी उम्मीद भी तोडो
एस लिया फरमाने नबी है ये दोस्तो
मन ला यसकोरुन्नास ला यशकोरिल्लाह
(तिरमीज़ी—मुंतखब अहादीस सफह नं.559)
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7th February 2010, 01:05 PM
Khwahish!Janabewala Bahoota bahoot shqriya! zarra navazika.Allah apko salamat ,shado khurram rakhe.
Wafa
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एक पल---मुहम्मदअली वफा -
11th February 2010, 10:51 AM
एक पल---मुहम्मदअली वफा
आपसे हमने बस लिया है एक पल
और हमने भी यहां जिया है एक पल
आपका एहसान गर भूल सकतें नहीं
कहानी गमकी सुनाने दिया है एक पल
पूरी उंम्र कोसते हमको रहे अपने,अदु
वाकिअ कि हमने पिया है एक पल
बूझ गया आखिर तुम्हारी फूंक से
ये दिया घरमें जला है एक पल
बिजलीकी कडक से जी लो ‘वफा’
तुमको ये मौका मिला है एक पल
11 फेब्रु.2010
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मोम को चाहियें__मुहम्मदअली वफा -
15th February 2010, 02:57 AM
मोम को चाहियें__मुहम्मदअली वफा
मोम को चाहियें एक उम्र ज़लने ज़लाने के लिये
बर्कज़ो गिरतीए है , पल में खशो खाशाक बना देती है
14फ़ेब्रु.2010
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तकदीर बदल दी है—मुहम्मदअली वफा -
16th February 2010, 11:21 PM
तकदीर बदल दी है—मुहम्मदअली वफा
एक लफ्ज़ ‘ला’से तस्वीर बदल दी है
और ’इल्लल्लाह’से तदबीर बदल दी है
मुमकीन नहीं ज़माना बदले हमारा रास्ता,
दाअवते ईमान से तकदीर बदल दी है.
‘ ला’=नहीं
’इल्लल्लाह’=सिरफ अल्लाह
‘ला ई लाहा इल्लल्लाह’=अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं
16फेब्रु.2010
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कारोबार भी करें---मुहम्मदाली वफा -
23rd February 2010, 09:22 AM
कारोबार भी करें---मुहम्मदाली वफा
ईतनी तो लंबी उम्र कहां के इंतेज़ार भी करें
और प्यारका ए हमसफर कारोबार भी करें
जो करना है यहां ,अभी इस वक्तत ही करलो
कलके ये वादोंका तो क्युं एतेबार भी करें
22फेब्रु.2010
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दीवार हो गई___मुहम्मदअली वफा -
11th March 2010, 09:52 AM
दीवार हो गई___मुहम्मदअली वफा
आयनेकी आंख अश्क बार हो गई
देखने वाली नजर दीवार हो गई
ए चमन ज़ार जब लूटे गये वफा
हर तर्फ से जिन्दगी बेज़ार हो गई
6मार्च2010
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पखी कहा डेरा बनाये_मुहम्मदअली वफा -
12th March 2010, 09:22 AM
पखी कहा डेरा बनाये_मुहम्मदअली वफा
अब उम्मीद है कि फिर से पौदो मे जान आये
धरती हरी हो जाये कलियां खिल जाये
दरख्त तहनिया अंगडाई लेने लगे
पत्तोके लिबास से वृक्ष लहराये
रग जीवनमे नये आये
पंखी खूशिया मनाये
सूरज धूपकी खैरात करे
सर्दी से सब नजात पाये
मगर किसने जलाय है लावा
कौन आग की बरसात बरसा रहा है
बरफ तो पीघलेगा मगर घर भी जलेगे
वृक्ष खुद भष्म होजाये
पंखी कहां डेरा बनाये
११मार्च२०१०
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सजाते रहा करो—मुहम्मदअली वफा -
24th March 2010, 11:47 AM
सजाते रहा करो—मुहम्मदअली वफा
मतलब हो तो कोई भी बात पूछ लो
वरना नजरको हमसे बचाते रहा करो
धोका नहीं ये हुनरमंदी का रहा फन
तूटे हुए रिश्तेको सजाते रहा करो.
24मार्च2010
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24th March 2010, 01:27 PM
Ali sahab Aadaab!
Aapki yeh shayari nahi tamaam shyari ka nichor hai..... Aapki umdaa soch aur khayal ka aur behtrin shayar hone ka sabut hai...
Allah aapki kalam mein zor o takhat ata farmaye... Aameen
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Originally Posted by wafa ali
तकदीर बदल दी है—मुहम्मदअली वफा
एक लफ्ज़ ‘ला’से तस्वीर बदल दी है
और ’इल्लल्लाह’से तदबीर बदल दी है
मुमकीन नहीं ज़माना बदले हमारा रास्ता,
दाअवते ईमान से तकदीर बदल दी है.
‘ ला’=नहीं
’इल्लल्लाह’=सिरफ अल्लाह
‘ला ई लाहा इल्लल्लाह’=अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं
16फेब्रु.2010
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Originally Posted by wafa ali
सजाते रहा करो—मुहम्मदअली वफा
मतलब हो तो कोई भी बात पूछ लो
वरना नजरको हमसे बचाते रहा करो
धोका नहीं ये हुनरमंदी का रहा फन
तूटे हुए रिश्तेको सजाते रहा करो.
24मार्च2010
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It's also a amazing thought........ keep it up...
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तकदीरका आलम__मुहम्मदअली वफा -
26th March 2010, 08:40 AM
तकदीरका आलम__मुहम्मदअली वफा
छूट गया है हाथसे तदबीरका आलम
और तेरे हाथ में तकदीरका आलम
हम जकडे हैं यहां जंजीरे दुनियकीमें
और तेरे हाथ में तस्वीरका आलम
25माएच2010
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बदल गए—मुहम्मदली वफा -
1st April 2010, 10:45 AM
बदल गए—मुहम्मदली वफा
आया जो बोझ दिल पे कैसे मचल गए
बदला हवाका रुख तो वो भी बदल गए
कुछ भी न रहा याद ,कसमो अहदो वफा
वकत के ढलान पे सब कुछ निगल गये
1एप्रील2010
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बहार आ जाती है—मुहम्मदअली वफा -
2nd April 2010, 08:51 AM
बहार आ जाती है—मुहम्मदअली वफा
आपके आनेसे यहां बहार आ जाती है
गर अफसोस के फिर खिज़ा भी आयेगी
आप न आये तो छाती है उदासी चमनमें
आप आये तो फिक्रे फस्ल भी छायेगी
फस्ल=जुदाई
1एप्रील2010
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सहार तो साथ है—मुहम्मदअली वफा -
4th April 2010, 09:44 AM
सहार तो साथ है—मुहम्मदअली वफा
जिन्दगी जीनेका सहार तो साथ है
इमां के समंदर का किनारा तो साथ है.
हो सके सब छोड दे कारवांने राह
कोई नहो गर खुदा हमारा तो साथ है
4एप्रील2010
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खाक बन गये---मुहम्मदअली वफा -
7th April 2010, 03:21 AM
खाक बन गये---मुहम्मदअली वफा
कुछ बाग बनगये, कुछ खाक बन गये.
बच गए वो गंजीनए अवराक बन गए.
जिनकी तरफ बढाये उलफतके पयमाने,
वो भी हमारे दिलके कुछ दाग बन गये.
हमने पुकारातो उसे शिकवा कहा उसने,
उन्होंने अलापे तो वो सभी राग बन गये.
एसी कराबतको भी सीने से है लगाया
तगाफुल रहा, फिरभी गरेंबा चाक बन गये
नाला करे तो किससे, कहां गेर था कोई
फूल सीनेके वफा अब आग बन गये.
6एप्रील2010
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ईब्नुल वकत—मुहम्मदअली वफा -
12th April 2010, 09:49 AM
[ B]ईब्नुल वकत—मुहम्मदअली वफा [/B]
[ B]उसने हमारे हुनरका लोहा नहीं माना
ज़रूरत जबा पडी ,हमे अब बुलवाया
ये खो गयें है सब खोखले घरोंदो में
दीवार पक्की चुनने हमको समझाया
ये ईब्नुल वकत हे, या है इबने सबील
कभी हमको रोंदा कभी चोटी पे बिठलाया
12एप्रील2010 [/B]
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देखता रहा—मुहम्मदअली वफा -
20th April 2010, 09:08 AM
देखता रहा—मुहम्मदअली वफा
नफरतकदे के बाम को देखता रहा
ज़हरसे भरे ये जाम को देखता रहा
दिन भी गुज़रा तेरी जुल्मतें लिये
में उल्झनों की शाम को देखता रहा.
20एप्रील2010
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दवा बनते-मुहम्मदअली वफा -
24th April 2010, 10:11 AM
दवा बनते-मुहम्मदअली वफा
दर्द बनते यहां या दवा बनते
कुछ न कुछ हम यहां बनते
बहारोंसे यहां वास्ताही नहीं
चलो कुछ देर खिंज़ा बनते
जुल्मतकदेको मिटाने यहां
शोला बननते कभी हवा बनते
उठ रही है आंधी सीनो में
किसीके दर्दकी ज़ुबां बनते
जमियते मिल्लतके लिये
इल्लल्लाहकी अज़ां बनते
मिटाते मज्लूमियके अंधेरे
तेरी महेफिलमें गर शमां बनते
दास्तां न सुनाते बे वफाईकी
सभी कुछ झेलते ,वफा बनते
24एप्रील2010
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गंगो जमन रहे—मुहम्मदअली वफा -
27th April 2010, 01:17 AM
गंगो जमन रहे—मुहम्मदअली वफा
तहजीबके धागोमें ये गंगो जमन रहे
खूशियोंकी बौछारमें दोनो वतन रहे
नफरतकदे के सांपको बे वतन करो
यहां भी अमन रहे ,वहां भी अमन रहे
लहराता तिरंगा या चांद तारे की चमक
दोनोका अपने देशमे उंचा गगन रहे.
सदियोंसे हम एक थे दो घर हुए तो क्या
दोनों के आंगनों में खिलता चमन रहे
हम कीसी दिवारको न चुनेंगें बीचमें
वो भी मगन रहे और हमभी मगन रहे
अमनकी आश-26एप्रील2010
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बुरा माने—मुहम्मदअली वफा -
3rd May 2010, 11:01 AM
बुरा माने—मुहम्मदअली वफा
दर्द कोई माने उसे कोई दवा माने
नुस्खेके कई रूप, जो चाहे भला माने
हक गोईकी तो वफा आदत रही अपनी
उलझे क्यों हम उनसे भला गर बुरा माने
2मे2010
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फूलभी लगतें हं कागजी—मुहम्मदअली वफा -
15th May 2010, 04:35 AM
फूलभी लगतें हं कागजी—मुहम्मदअली वफा
हसरत ही निकल जाये फिर क्या रहे बाकी
खुश्बू नहीं तो फूलभी लगतें हं कागजी.
तुने लगा रख्खा है नफ्से फानी से ये नाता
जो हो गेर फानी उससे ही रहे आशिकी
कटतें है तो बढ जातें,ये, ये पॆड के तने
नाहक चालाओ ना उनपे अब ये छुरी
भींगने की ये मौसम आ गई वफा
रहेमतभी बन गई है कुछ आज बारिशी
इंतेजारकी हद तो वफा कोई नहीं होती
कयामत तक होती नही कोई जिंदगी
14मे2010
Last edited by wafa ali; 15th May 2010 at 04:59 AM..
Reason: spell eror
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जुल्मका पथ्थर-मुहम्मदअली वफा -
21st May 2010, 02:35 AM
जुल्मका पथ्थर-मुहम्मदअली वफा
किसी भी शाख पे फल, रह नहीं सकता
कि हाथ में राह रवके है जुल्मका पथ्थर
कोई भी फूल अब यहां खिल नहीं सकता
हर एक कली के सर पे है कतिलका खंज़र
20मे2010
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भडकाई गई—मुहम्मदअली वफा -
29th May 2010, 01:40 AM
भडकाई गई—मुहम्मदअली वफा
दास्तां वो फिर से दोहराई गई,
हर चमनमें आग भडकाई गई.
पक जाए कुछ् गरज़की रोटिय़ां,
हर गली में आग फेलाई गई.
28मे2010
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प्यार करते हैं--वफा -
30th May 2010, 08:52 AM
प्यार करते हैं__वफा
इशरों किनायों से प्यार करते हैं,
कागज़ी फूलोंसे बहार करतें हैं
इंनवेंनत्री आशिकों की ली नहि कभी
वफा वो इश्कभी उधार करते हैं
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Recent updates of BAGeWAFA Urdu_Hindi 3rd June2010. -
3rd June 2010, 11:09 PM
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Wafaa ki baate -
11th June 2010, 08:22 AM
Wafaa ki baate do pal ki mulaakaate
Waqt par jaha me sab rang badal jaate.
Ajay Nidaan (09630819356)
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Kisi ek chehare ki talash me bhatakti rahee zindagi
par mila nahi zindagi ko apni pahchaan ka chehara.
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ढूंढ के लाओ---मुहम्मदअली वफा -
28th July 2010, 08:49 AM
ढूंढ के लाओ---मुहम्मदअली वफा
रहे ताबिंदा ये जिंदगी, हुनर को ढूंढ के लाओ.
गुजरी हुई वो शामो सहर को ढूंढ के लाओ.
कहां ठहरा हुआ है गुम शुदा वो वक्तका पानी,
डगर वो ढूंढ के लाओ नहर को ढूंढ के लाओ.
27जुलाई2010
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31st July 2010, 12:48 AM
Quote:
Originally Posted by wafa ali
ढूंढ के लाओ---मुहम्मदअली वफा
रहे ताबिंदा ये जिंदगी, हुनर को ढूंढ के लाओ.
गुजरी हुई वो शामो सहर को ढूंढ के लाओ.
कहां ठहरा हुआ है गुम शुदा वो वक्तका पानी,
डगर वो ढूंढ के लाओ नहर को ढूंढ के लाओ.
27जुलाई2010
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AadaaB Ali SahaaB!
Bahut Umdaa Ali Sahaab......... Ise mukammal kijiye bahut achchi gazal ban padegi yeh mujhe ummid hai aap ise mukammal kareNge.....
In dono ashaaroN per dil se daad kabool kijiye......
Likhate rahiye.......
Khush rahiye........
Khuda Hafez.........
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Tum jo chahe talash -
31st July 2010, 09:39 PM
Tum jo chahe talash kar kar lo mere yaar zindagi me
jao pahale logo ke dilo me jara si insaaniyat to jagao.
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31st July 2010, 09:45 PM
Quote:
Originally Posted by ajay nidaan
Tum jo chahe talash kar kar lo mere yaar zindagi me
jao pahale logo ke dilo me jara si insaaniyat to jagao.
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insaaniyat ki baat to itni hai sheikji
badkismati se aap bhi insaan ban gaye
nm
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Kismat ki to baat hi -
31st July 2010, 09:55 PM
Kismat ki to baat hi na kar tu mere zidd ke saamne
vo to sirf mohataat hoti hai mehnat karne wale kee.
Ajay Nidaan (09630819356)
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Kisi ek chehare ki talash me bhatakti rahee zindagi
par mila nahi zindagi ko apni pahchaan ka chehara.
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ढूंढ के लाओ---मुहम्मदअली वफा -
4th August 2010, 03:56 AM
ढूंढ के लाओ---मुहम्मदअली वफा
रहे ताबिंदा ये जिंदगी, हुनर को ढूंढ के लाओ.
गुजरी हुई वो शामो सहर को ढूंढ के लाओ.
कहां ठहरा हुआ है गुम शुदा वो वक्तका पानी,
डगर वो ढूंढ के लाओ नहर को ढूंढ के लाओ.
हकीकत जो है परदेमें उसे भी देख ले दुनियां
कोई अहले नज़र आओ, नज़र को ढूंढ के लाओ.
गिरी थी जब बेदर्दी से ये हमारे खिरमन पर
जलाया था जीसे तुने शजर को ढूंढ के लाओ.
कभी हमभी थे उनकी निगाहों में पोशीदा
वफा जाओ कहीं से वो खबर को ढूंढ के लाओ.
4ओगस्ट 2010
b]जनाब खवाहिश साहब
आदाब अर्ज
आपकी होंसला अफज़ाई और जर्रा नवाज़ीका शुक्रियह. तीन और बंद लगाके गज़ल पुरी करनेकी हकीर कोशिश की है.उम्मीद है पसंद फरमायेंगे.
अहकर
मुहम्मदअली वफा
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An Incomplite Dream
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8th August 2010, 01:44 AM
Quote:
Originally Posted by wafa ali
ढूंढ के लाओ---मुहम्मदअली वफा
रहे ताबिंदा ये जिंदगी, हुनर को ढूंढ के लाओ.
गुजरी हुई वो शामो सहर को ढूंढ के लाओ.
कहां ठहरा हुआ है गुम शुदा वो वक्तका पानी,
डगर वो ढूंढ के लाओ नहर को ढूंढ के लाओ.
हकीकत जो है परदेमें उसे भी देख ले दुनियां
कोई अहले नज़र आओ, नज़र को ढूंढ के लाओ.
गिरी थी जब बेदर्दी से ये हमारे खिरमन पर
जलाया था जीसे तुने शजर को ढूंढ के लाओ.
कभी हमभी थे उनकी निगाहों में पोशीदा
वफा जाओ कहीं से वो खबर को ढूंढ के लाओ.
4ओगस्ट 2010
b]जनाब खवाहिश साहब
आदाब अर्ज
आपकी होंसला अफज़ाई और जर्रा नवाज़ीका शुक्रियह. तीन और बंद लगाके गज़ल पुरी करनेकी हकीर कोशिश की है.उम्मीद है पसंद फरमायेंगे.
अहकर
मुहम्मदअली वफा
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Janab Wafa Ali sahab AadaaB!
Janab aapne nacheez ki baat rakhi iska tahe dil se shukra guzaar huN..
Aur Masha Allah aapne jo do sher kahe the usi andaaz ko baki sabhi sheroN meiN barkaraar rakha....... sabhi sher behad umdaa hai dil se daad kabool kijiye janab ..... aur ek guzarish ke aap is gazal section meiN yaa dard section mein bhi post kariye taki is khubsurat khayaaloN ko padhne ka sabko mouka mile....
Aise hi umdaa kalaamoN se nawaazte rahiye.... Allah aapki kalam meiN zor badkhshe aameen.
Khush rahiye.
Khuda Hafez.
Last edited by kwahish; 8th August 2010 at 01:49 AM..
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मातम मनाए क्या?-मुहम्मदअली वफा -
8th August 2010, 05:09 AM
मातम मनाए क्या?-मुहम्मदअली वफा
अब तुम ही बताओ, उनसे निभाये क्या?
सोख्तां जां है सभी उनको बताए क्या ?
मतलबकी भी कहते गर गवाराथा हमे तो,
सब बे तूकी ही बात है, अब सुनाये क्या?
चेहरेकी रंगत ने किस्से को रो लिया,
तुमही बताओ जाने मन अब छुपाए क्या?
जुल्मतकदे का हाथ तो बढता रहा हर सु,
ईज्जत गई,अस्मत गई अब बचाए क्या?
रोने से भी डरतें हैं हम, कि हस न पडे वो,
बाकी रहा न कुछ् ‘वफा’ मातम मनाए क्या?
8ओगष्ट2010
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नशेमनको तबाह करना—मुहम्म्दअली वफा -
6th September 2010, 10:59 AM
नशेमनको तबाह करना—मुहम्म्दअली वफा
तुम्हारे मुकद्दरमें लीखा, तीनकों को जमां करना
मिले कोई भी शाख घोंसला उसपे बपा करना
उसने कहां देखा कि में कीसको जलाती हुं
बर्कका काम है हरदम नशेमनको तबाह करना
6 सपटे.2010
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आझाद नजम:कैसे ईद मनाएं ---मुहम्मदली वफा -
11th September 2010, 06:58 AM
आझाद नजम:कैसे ईद मनाएं ---मुहम्मदली वफा
हर तरफ छाये हुए हैं मौत के साये
गोलियां ले कर तुम्हारे हाथभी आये
खून की नदीयों में बच्चें भी नहाये
अब कैसे हम यारो ये इद मनाये
चांद भी निकला तो रुस्वाईयां लेकर
खोई हुई अज़मतकी ढज्जियां लेकर
अब किससे मिलायें हम दस्तओ, गरेबां
आये हैं हम मदफनसे हड्डियां लेकर
दे दो जरा मौका कि अज़मत को जगाऎं
तुम्ही बताओ अब यार कैसे ईद मनाएं
उम्मीद है जुल्मतोंके बादलभी हटेंगे
जालिम कि ओलादके हाथों भी कटेंगे
कुछ कर नहि सकते तो आंसु बहाने दो
मज़लुमके आंसु से ये लावा बुझेंगें
बेठे हैं हम उम्मीदका एक दीप ज़लाये,
कुछ तो कहो ए दोस्त कैसे ईद मनाएं.
हर कोम के हाथ आलुदा है खून से
दामन हर दोस्तका परिशां है खून से
ये खून अब छूपाये छूपता नहीं यारो
मकतुल का हर घर संवारा है खून से
कीस मुंह से तुम कहो ईदगाह मे जायें
साईल है हम तुमसे ,कैसे ईद मनाएं
10Sept.2010(Day of Eidul Fitra)
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