शराफत से मिलो तो कमजोर समझते हैं लोग ,
किसी को सताने की ,मेरी आदत ही नही।
नजरें मिलाके देखो तो, भड़कते हैं लोग,
तिरछी निगाहें डालने की, मेरी आदत ही नही।
सच्चाई से जंग लड़ो तो दगा करते हैं लोग,
पीछे से वार करने की, मेरी आदत ही नही।
धर्म की सच्चाई को समझते नही लोग,
झूठी अंधश्रध्दा की, मेरी आदत ही नही।
ज्ञान की बाते करो तो टालते हैं लोग,
व्यर्थ की बातें करने की, मेरी आदत ही नही।
मेरे हर एक काम में विघ्न डालते हैं लोग,
मुश्किलों से भागने की, मेरी आदत ही नही।
गद्दारों और मक्कारों को सलाम करते हैं लोग,
नमक हरामी करने की, मेरी आदत ही नही।