Hello friends,
Sharing some of my thoughts with you.
जागृति
समेट लूँ तुझे
भर लूँ मैं
अपना मन
तेरी शांत तरंगों से
जो बहती रहें
सागर के
भीतर की
परतों में
उद्वेलित धाराओं सी .
लेकिन
मंथन से
ना प्रकट हो
कोई हलाहल .
शांत कोलाहल
बरस उठें
मेरे
भीतरतम की
चिर -अतृप्त
भीतियों पर ,
स्पंदित ह्रदय
सदा करे
यह
अमृत - पान .
Last edited by swaraa; 24th June 2013 at 11:59 AM..