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Originally Posted by Azaz AHMAD
अपने आँसूओं को एसे ही बहाया मत कर ।
जिन्हें धूप पसंद हो, उनपर साया मत कर ।
उसे तो आदत हैं बार बार धोका देने की ,
तु जानबूझकर उसके धोके खाया मत कर ।
अपने भी डाल देते हैं अब जख्मों पर नमक ,
तु सबको अपने घाव यू दिखाया मत कर ।
जिसको प्यार के कसमों की अहमियत ना हो ,
तु एसे बेवफा के वादो को निभाया मत कर ।
हर चीज़ तेरी उसने जलाकर राख कर दी हैं ,
उसकी निशानीसे खुद को तु जलाया मत कर ।
वो तो तुझे भुल गयी ,तु भी उसे भुल जा ;
याद मे उसकी खुद को तु तड़पाया मत कर ।
-एझाझ अहमद
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waaah...bahut khoob..
achcha laga aapko padhna..
shayri me ye aapki shuruaat hai is kalaam ko padhkar aisa nahi lagta..
aur bhi kalaam share kijiyega..