हमें ना मिली जाने किधर गयी होगी -
14th November 2014, 08:30 PM
हमें ना मिली जाने किधर गयी होगी
ज़िंदगी कहीं दूर से गुज़र गयी होगी
हम ही न चले ये हमारा है कसूर
मंज़िल तक तो राहगुज़र गयी होगी
चाँद तो निकला चांदनी नहीं आई
वो तेरी छत पर उतर गयी होगी
लो निकल चली आज आखरी धडकन
की दिल-ए-वीरां में ये डर गयी होगी
है होने लगा "मायूस" जश्न जहाँ में
आपके मरने की खबर गयी होगी
ता उम्र रहा इक रोज़-ए -मुकम्मल का इंतज़ार
किसी में शाम न मिली तो किसी में सहर नहीं
Last edited by m.mayoos; 14th November 2014 at 09:15 PM..
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