एक दुआ लिख दुं*** मुहम्मदअली ‘वफा’
अब उनके नामसे ही आज में एक बयां लिख दुं.
जुनु को अकल और , हिकमतकी जबां लिख दुं
बुखारा और समरकंद, दे दिये मुफ्लीस शायरने,
बलासे कुछ भी कोइ बोल दे, सारा जहां लिख दुं.
खुली वो झुल्फ तो ,फिक्रे नाजुकपे गुमां गुजरा,
बादल की अदा लिख दुं या काली घटा लिखदुं.
वो आए जो कतल करने ,लिये शमशीर बरहीना,
जबीं पे महेरबा लिख दुं, ब तेगे पासबां लिख दुं.
ये गुल है कि महकते गुलके रुखसारका परतु,
हवा की उंगलियां ले के कहो तो कहकशां लिखदुं.
समझता हुं में उलझन ये मर्जे नागहानी में,
दरदका नाम भी लिख दुं, कहो तो एक दवा लिख दुं.
कहां तक गर्द छानोगे ‘वफा’ जंगल बयाबांकी,
जरा आओ करीब मेरे तुम्हे में एक दुआ लिख दुं.
16June2008