हे रोम रोम में बसनेवाले राम... -
4th December 2015, 05:02 PM
हे रोम रोम में बसनेवाले राम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
आस का बंधन तोड़ चूकी हूँ
तुझपर सबकुछ छोड़ चूकी हूँ
नाथ मेरे मैं क्यो कुछ सोचू, तू जाने तेरा काम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
तेरे चरण की धूल जो पाये
वो कंकर हीरा हो जाये
भाग मेरे जो मैने पाया, इन चरणों में धाम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
भेद तेरा कोई क्या पहचाने
जो तुझसा हो, वो तुझे जाने
तेरे किये को हम क्या देवे, भले बुरे का नाम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
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.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
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