हज़ल -
10th February 2016, 08:47 PM
हज़ल
सरे राह बारिश में छाता उड़ा कर
तेरा भीग जाना गज़ब हो गया
जो होली के दिन भी नहीं थी नहाती
तेरा कल नहाना गज़ब हो गया
तेरे सुर्ख़ होंठों पे ये मुस्कुराहट
नज़रबट्टुओं की हो जैसे बनावट
लहू पी के आई हो जैसे कहीं से
तेरा पान खाना गज़ब हो गया
खुली ज़ुल्फ़ है या हैं काली घटायें
जुओं का क़बीला तुझे दे दुआयें
ऐ मेरे मोहल्ले की सन्नी लियोनी
तेरा सर खुजाना गज़ब हो गया
वही क़ाफ़िये हैं वही ज़ाविये हैं
ज़मीनें हमारी क़िले आपके हैं
हमारी ग़ज़ल ही का मतला बदल के
हमीं को सुनाना गज़ब हो गया
मुहब्बत की बारिश का कैसा असर है
जिसे भी मैं देखूँ वही तर-ब-तर है
बुढ़ापे की दहलीज़ पर ऐसे-ऐसे
मेरा गुल खिलाना गज़ब हो गया
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