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30th January 2016, 04:37 PM
वह रोज बस में रेडियो स्टेशन जाया करती थी, पंजाबी प्रोग्राम पेश करने। बस में जाती अमृता को देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता था, लेकिन मैं विवश था। मैं सोचता रहता, बस से, बस की भीड़ से अमृता को मुक्त करवाने के बारे में। अचानक मेरे काम के रुके हुए पैसे मुझे मिले, सोचा हुआ सच हो गया और बल्ले-बल्ले भी। नया स्कूटर आ गया और बस की बेआरामी चली गई। मैं अमृता को हर रोज रेडियो स्टेशन तक ले जाता और वापस भी ले आता। वह पीछे बैठी मेरी पीठ पर उंगलियों से कुछ लिखती रहती, मैंने कभी पूछा नहीं कि वह क्या लिखती है। अमृता ने खुद ही कहीं लिख दिया कि पीठ पर वह साहिर-साहिर लिखती रहती थी। साहिर लुधियानवी का नाम।
एक मुलाकात में मुझसे किसी ने पूछा कि मुझे बुरा नहीं लगता-अपनी पीठ पर लिखा साहिर। मैंने कहा कि इसमें बुरा ही क्या है? पीठ भी उसकी और नाम भी उनके मनचाहे का।
इमरोज़
Amrita - Imroz
Amrita - Sahir
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.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
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