पत्थर रो पड़ेंगे -
11th October 2012, 07:42 AM
पत्थर रो पड़ेंगे
चीनीं से लेकर चरित्र तक, सब मिलावट है,
बेगानों से लेकर, मित्र तक, बहुत धोखे हैं,
अरे शराफत की दीवार से,उठा के देखीये पर्दा,
झरोखे ही झरोखे हैं,
मोहब्बत की चादर में हैं सुराख़, फलक के सितारों जितने,
आज दिन में है अँधेरा रात से बड़कर,
हमतो सुनते हैं चीखें बुतखानों से,
क्या कीजीये जो ख़ुदा ही गुनहगार हूए,
ओहो, यह आधुनिकता है,
खरीदीये, यहाँ सब कुछ बिकता है,
गद्दी से लेकर, एजाज़ तक,
कफ़न से लेकर जिंदा मास तक,
ईमान से लेकर, एहतराम तक,
महबूबा से लेकर इश्केजाम तक,
शायर से लेकर शौहरत तक,
ख़ुदा से लेकर रहमत तक..
सब बिकाऊ है..
यहाँ इंसान से सीखे है गिरगिट रंग बदलना,
यहाँ बशरीयत उधारी है,
यहाँ ख़ुदा भी नोटों का चमचा है,
यहाँ ज़िन्दगी बस उधारी है,
अरे गिरावट की गहराइयां न पूछिये हजूर,
क्योंकि गुनेहगार पुजारी है,
कोई ले चलो हमें शमशानों में,
सुना है रूहें जफ़ा नहीं करती,
मन है खंडहर में बना लें घर अपना,
और जम के निकालें मन के गुब़ार,
ऐ मगरमच्छ के आंसू वालो,
मेरा दावा है, पत्थर रो पड़ेंगे, मेरा दावा है पत्थर रो पड़ेंगे.
शाम कुमार
5.4.81
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