प्यार इस शब्द के बारे मे कहने का मतलब है कि आप किस नज़र के स्तर से और किस आयाम से मह्सूस करते है, क्योकि मेरी नज़र मे प्यार के परिभाषा - "सच्चा प्यार सिर्फ़ देने मे यकीन रखता है वो समर्पित होता है उस भावना से और इस लिये ही तो उसकी पनाह मे हर कोई प्यार के मायनो को समझ नही पाता." ये कहानी अब शुरु होती है -
एक व्यकित जो जमीन पर एक पेड लगता है और अपनी विशाल सोच की वजह से वो उसे जान से भी ज़्यादा ख्याल रख कर सीचता है वक्त के अनुसार पानी,खाद और बाकी जितनी जरुरी तत्व सभी प्रदान करता है, और जैसे ही पेड बडा होता है तो व्यकित उसकी छांव मे बैठते है उन्हे सूकुन मिलता है. इस तरह से प्यार हमेशा छांव जरुर देता है वो
पलता नज़ाकत मे है लेकिन पनाह मे अपने किसी को रखने की हिम्मत उसमे जरुर होती है, और इस पेड की तरह समर्पण की भावना हर प्यार मे नही होती क्योकि उसे सीचने वाले व्यकित हासिल नही हो पाते, और इन्सान के प्यार मे समर्पण आजकल नज़र ही नही आता ऐसा इस लिये है क्योकि "हम अपने अन्दर देखने ही नही चाहते दौलत की हवस और झूठी शान ने इन्सान को संकुचित सोच के दायरे मे खडा कर दिया है", अब यहा पर पेड जिस ने लगाया उस क्या मिला यदि इस बात को देखे तो फ़िर आप प्यार को भूल जाये क्योकि असल प्यार पाने के लिए समर्पण ही एक सार्थक रास्ता है मगर आजकल की ज़िन्दगी मे भी ये मौजुद है बस आप उसे दिशा दीजिये सही और मायनो और साफ़ नींयत के साथ मगर इतना वक्त लोग देना नही चाहते. अब उस पेड ने कितनो को अपनी छांव से खुशी का वो लमहा दिया होगा यकीनन जिसे राहत मिली होगी उसके होठो पर एक दुआ जरुर होगी, ऐसे तो कर्म करके पुण्य कमाया जाता है....