वो एक लम्हा मसर्रतों का जो याद आया तो अश्क आ -
20th September 2019, 10:22 PM
वो एक लम्हा मसर्रतों का जो याद आया तो अश्क आये
फिर उस ही लम्हे का नक़्श दिल से मिटाना चाहा तो अश्क आये
तमाम शब् इक उमीद रौशन थी ख़ुश्क आँखों में सुबह लेकिन
जब अपनी चौखट का मैंने जलता दिया बुझाया तो अश्क आये
ख़ुशी ख़ुशी अलविदा मैं उसको बड़ी मुहब्बत से कह चुका था
पर उसने बोझल निगाह से जब पलट के देखा तो अश्क आये
मैं रोने वालों को हँस के कहता था कितने कमज़र्फ लोग हैं ये
जब आज अपने ही सर पे ग़म का पहाड़ टूटा तो अश्क आये
हिक़ारतें झेलना तो आदत में इस क़दर है शुमार मेरी
अगर किसी ने मुहब्बतों से कभी पुकारा तो अश्क आये
फ़लक से दौरे-ख़िज़ाँ में सूखे शजर की आँखों के सामने से
बग़ैर बरसे जो कोई अब्रे-बहार गुज़रा तो अश्क आये
रहा जो महरूम लम्से-चारगरों से "नायाब" ज़िन्दगी भर
वो ज़ख्म जब आज इक फ़रिश्ते ने हँस के चूमा तो अश्क आये
Nitin Nayab
Anil Arora
Naulekahe par tere khoon ki boond hai,
Motiyo ki jagah par jada kaun hai,
Jiski khatir daga chandini se kare,
Puch suraj ki woh dilruba kaun hai?
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