ओ बहनों के भाई अब तुम भी नहीं दिखते -
18th March 2014, 06:38 PM
ओ माओं के बेटे चले गए तुम कहाँ
ओ बहनों के भाई अब तुम भी नहीं दिखते
वो मिटटी कि खुसबू भी अब रही कहाँ
वो बचाने को ज़मीर अब खंज़र नहीं खिचते।
लाशों कि भीड़ हे, गोया हर दर्द से अनजान
यूँ बिक रहे है लोग जेसे हों कोई सामान
रो रही हैं माँए, सिसक रहा हे यकीन
न आसमा रहा हामी न मेरी अब हे ज़मीन
वो चार लोग भी अब ज़नाज़े में अबनहीं दीखते
वो बचाने को ज़मीर अब खंज़र नहीं खिचते।
ओ बहनों के भाई अब तुम भी नहीं दिखते
Regards
Sushil
लब पे मुस्कान को लिए ऐ दोस्त, काँधों पे लाश अपनी ढोते हैं,
इस भरे शहर में हम Dard-e-Sush, जो न पाया उसे भी खोते हैं!
lab pe muskaan ko liye ae dost, kandhon pe laash apni dhote hein
is bhare sheher me ham dard-e-sush, jo na paaya use bhi khote hein
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