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Originally Posted by chandranshu tiwari
नमस्कार मित्रों
एक ग़ज़ल-------
तअल्लुक और उमीदों के शजर हम काट आये है।
हज़ारों मील का लम्बा सफ़र हम काट आये है।
ज़रा देखे मुहब्बत कब तलक पलकों पे रखती है-
रिवायत के सभी ज़ेरों ज़बर हम काट आये है।
ये साहिल से कहो अब तो हमें आगोश में ले ले-
सफ़र में जो मुख़ालिफ़ थे, भँवर, हम काट आये है।
बरहना सर, सुलगती धूप, और पावों में छाले थे-
सफ़र दुश्वार था जानम, मगर हम काट आये है।
न रोकेगा कोई नन्हें परिन्दों को उड़ानों से-
अमीरे शह्र के मजबूत पर हम काट आये है।
सुना है आज उस बंजर ज़मीं पर फूल खिलते है-
तुम्हारे साथ जिस पर रात भर हम काट आये है।
ख्याल आता है जब हमको तो आँखें भीग जाती है-
हिलाल' उसकी तमन्नाओं के पर हम काट आये है।
hilal chandausvi (chandranshu tiwari)
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bohat khoob tiwari ji...
sabhi ashaar laajawaab hain
aapse guzarish hai aap apni writings roman hindi me bhi post kijiye taaki sabhi members aapki ghazal ka lutf utha sake
Ummid hai shayri.com per aapka safar khushgawaar guzrega
yuhi likhte rahiye. .