Aik achchhi tehreer hai Janab Santosh Kumar Saheb. Maza aa gaya. Daad qubul kijiye.
(Waquif Ansari)
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Originally Posted by santosh_kumar
मैं तेरी मोहब्बत का इलज़ाम लिए फिरता हूँ
जिस शहर से भी गुजरूँ तेरा नाम लिए फिरता हूँ
तेरा जाना मेरे दिल को हर लम्हा रुलाता है
अश्क छुपाने की कोशिस नाकाम लिए फिरता हूँ
दरबे पर मुझसे मिलने तेरा नंगे पाँव आना
अब तक एहसासों की मैं वो शाम लिए फिरता हूँ
अच्छा है भूल जाऊं किस्मत मैं जब नहीं तू
तुझको भूलने के खातिर मैं जाम लिए फिरता हूँ
जीना भी क्या है जीना बिन तेरे भला मुझको
मैं अपने न होने का पैगाम लिए फिरता हूँ
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