Dekh Suraj Nikal Raha -
9th July 2016, 10:22 AM
हर्षित नभ का गौरव बन कर
निज आलिंगन को मचल रहा
देख सूरज निकल रहा........................
सच है कि तम गहरा था
भय और संशय का पहरा था
चाँद गगन में खोया था
तू धुर एकांत में रोया था
पर मन में था विश्वास तेरे
की रात भले उपहास करे
पर यदि प्रकाश को पाना है
तो आगे बढ़ते जाना है
कितनी ही ठोकर लगे मार्ग में
उठना है चलते जाना है
तू चलता ही रहा, गिरता ही रहा
उठता ही रहा, बढ़ता ही रहा
और देख तेरे साहस के आगे
वो भीषण तम विफल रहा
देख सूरज निकल रहा........................
यह कार्मलोक है हे मानुष
यहाँ कर्म महान प्रधान रहे
जो करना है वो तुझको है
हर क्षण तुझे यह ध्यान रहे
यह समय सूर्य की भाँति है
ढलता है तो उगता भी तो है
यह भाग्य कर्म के अंतर्गत
सोता है तो जागता भी तो है
एक कुरुक्षेत्र है यह जीवन
हर पल है एक युद्ध यहाँ
परिस्थिति अभी जो पक्ष में है
है अगले क्षण विरुद्ध यहाँ
पर अपने कर्मयोग के बल पर
हर बार तू मानुष सफल रहा
देख सूरज निकल रहा…………………………
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