Kuch aur hai jo mann se kagajon pe utar aaya hai . Baant rahi hoon aapke saath. Kaisa laga batayen jaroor . Thank you.
अतीत - वर्तमान - भविष्य ...........
नहीं जानती
इन्हें बाँटना ,
इन्हें बांधना
सीमा में .
खो दिए हैं
सब सीमाओं ने
अपने आकार
और
समय बहने लगा है
अनंत प्रवाह सा .......
अब कुछ और नहीं ,
मात्र
यही पल है .......
यही सत्य है .
मन की आग में
पिघल गए हैं
समस्त
हिम - खंड
और
पावन गंगा
बह चली है .......
टूट गए हैं
अंतिम बंध
और
थमा - सा
जो भी था ,
सब बह गया है .
समय की
अबाध गति में ,
धुंधला गयी हैं
आड़ी - तिरछी ,
टूटी - बिखरी
सब रेखाएँ
हथेलियों की ......
मिट गए हैं
समूचे
कर्म - अकर्म
और
कुछ नहीं बाकी .
अब कुछ नहीं बाकी
कोई सीमा
कोई आकार
कोई विकार .
माया - अमाया
राग - द्वेष
बंध - प्रतिबन्ध .
शेष है
केवल
अनंत विस्तार ,
अमिट शून्य......
मैं
रिक्त हूँ
और
मुक्त भी .
तुम्हें
स्वीकार हूँ ना ?
originaaly posted by Swaara.
Swaara ji aapko meri tarf se congratulations, na sirf is kavita k liay balki aap ki is uch manostithii { enlightened ] k liay bhi.
अतीत - वर्तमान - भविष्य ...........
नहीं जानती
इन्हें बाँटना ,
इन्हें बांधना
सीमा में .
खो दिए हैं
सब सीमाओं ने
अपने आकार
और
समय बहने लगा है
अनंत प्रवाह सा .......
अब कुछ और नहीं ,
मात्र
यही पल है .......
यही सत्य है .
मन की आग में
पिघल गए हैं
समस्त
हिम - खंड
और
पावन गंगा
बह चली है .......
टूट गए हैं
अंतिम बंध
और
थमा - सा
जो भी था ,
सब बह गया है .
समय की
अबाध गति में ,
धुंधला गयी हैं
आड़ी - तिरछी ,
टूटी - बिखरी
सब रेखाएँ
हथेलियों की ......
मिट गए हैं
समूचे
कर्म - अकर्म
और
कुछ नहीं बाकी .
अब कुछ नहीं बाकी
कोई सीमा
कोई आकार
कोई विकार .
माया - अमाया
राग - द्वेष
बंध - प्रतिबन्ध .
शेष है
केवल
अनंत विस्तार ,
अमिट शून्य......
मैं
रिक्त हूँ
और
मुक्त भी .
>>>>>>>>>>>>>>>>>> meray hisab se yeh kavita yahiN khatam ho jaani chahiay thi.........
तुम्हें
स्वीकार हूँ ना ?
Bahut bahut dhanywad aapke sarahna bhare shabdo ke liye. Jo aapne kaha kavita ke samapt hone ke liye vo ek tarah se theek hai lekin ye sirf glimpses hain uss manostithi ke . Vo permanent hoti to ye kavita hi nahi hoti. Shayad abhi ek kadam baaki hai.