एक व्यकित ने किसी से पूछा - नज़रिया क्या है ?
उसने कहा - ये नज़रिया दो बातो पर निर्भर करता है
पहला - सोचने का दायरा , दूसरा - मानसिकता की हद.
अब आते है देखने के स्तर पर यदि हम अपने समाज को देखे तो बाहरी नज़र से वो बहुत खूबसूरत दिखता है, वाकई मे वो खूबसूरत है या नही ये आपको समझना होगा क्योकि बाहर से सारी चीजे खूबसूरत दिखती है कोई फल, कोई वस्तु, कोई बच्चा,कोई फूल सब कुछ मगर दिखने और वास्तविक होने मे बडा फ़र्क है, और इसे जानने के लिये आपको इस समाज के दायरे मे उतरना होगा जो इसमे उतर कर भी अपने ज़मीर के आईने पर
इसकी धूल नही बैठने देता वो वही व्यकित है जो अपनी सोच के साथ मुक्कमल है .
अब आते है मानसिकता के आधार पर लोग अक्सर पहले से एक
धारणा बना लेते है और उस धारणा के आगे वो कुछ सोचना ही नही चाहते न जाने किस आधार पर वो अपने अनुभव को दर्शाते है यहां पर सिर्फ़ मान लेना काफ़ी नही होता किस रीति से माना अपने तर्क की कसौटी के आधार पर , पूरी तरह से सोच समझ कर माने तो सही लगता है अन्यथा यही लोग काफ़ी है बाकी लोगो को गुमराह कर , गलतफ़हमिया बढाने के लिये क्यो कि माने गये सकुंचित आधार पर भ्रम पैदा करने के लिये और क्या चाहिये.