एक उम्र गुज़ार दी हमने तनहाईयों में by Benaam shayar -
19th May 2015, 05:52 PM
एक उम्र गुज़ार दी हमने तनहाईयों में,
बची खुची अब गुजर रही हैं रुसवाईयों में।
गम की सिसकियाँ सुनता भी कोई तो कैसे,
दर्द की आवाज़ दब गई शहनाईयों में
सारे शहर की रौनक जिसे बहला न सकी,
खुश है वो शख्स आज मगर वीरानीयों में
रहने दो मुझे अँधेरों में, मैं यही अच्छा हूँ,
डर लगता है अब मुझे शहर की रंगीनियों में..!!
Anil Arora
Naulekahe par tere khoon ki boond hai,
Motiyo ki jagah par jada kaun hai,
Jiski khatir daga chandini se kare,
Puch suraj ki woh dilruba kaun hai?
|